SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Ekonoms) Xew] Xom ali 20 -01 Xper pasti Tomas X II RAMAXIMIRE EXERXxxreAXEXXXXIMIREOXXXX साधनों की भी वही दशा हे, वे अभी तक भौतिक प्रदेशों में ही कार्यकारी सिद्ध हुए है, इसलिये उनका अमौतिकअमूर्त श्रात्मा को जान न सकना वाध नहीं कहा जा सकता। मन भौतिक होने पर भी इन्द्रियों की अपेक्षा अधिक सामर्थ्यवान् है सही पर जव वह इंद्रियों का दास बन जाता है-एक के पीछे एक इस तरह अनेक विषयों में वंदर के समान दौड़ लगाता फिरता है तब उसमें राजस व तामस वृत्तियाँ पैदा होती है सात्विक भाव प्रकट होने नहीं पाता 1 यही बात' गीता में भी कही है.-- इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते / तदस्य हरति प्रज्ञा वायुनावमिवाऽम्भसि / (10 2 श्लोक 67) इसलिये चंचल मन में आत्मा की स्फुरणा भी नहीं। होती। यह देखी हुई बात है कि प्रतिविम्य प्रहण करने की 2 शक्ति जिस दर्पण में वर्तमान है वह भी जब मलिन हो जाता है तब उस में किसी वस्तु का प्रतिविम्व व्यक्त नहीं होता। इससे यह वात-सिद्ध है कि बाहरी विषयों में दौड़ लगाने वाले अस्थिर मन से आत्मा का ग्रहण न होना उसका वाध नहीं है किन्तु मन की शक्ति मात्र है। इस प्रकार विचार करने से यह सिद्ध होता है कि मन, इन्द्रियों, सूक्ष्म दर्शक यत्र आदि सभी साधन भौतिक होने से प्रात्मा का निषेध करने की शक्ति नहीं रखते। (3) निषेध से निषेध कर्ता की सिद्धि / कुछ लोग यह कहते हैं कि हमें श्रात्मा का निश्चय नहीं ! होता, बल्कि कमी कभी उसके प्रभाव की स्फुरणा हो पाती ATESXAXIREKREYMARAXARAxmarwari XEXXEDXXXREXXKarton WATrana na
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy