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________________ RAILX.inxxmmmxmAJLAMAnema .misment - - - ( 183 ) 10 साधु प्रकृति पुरुषां ही को ब्राह्मण कहना चाहिए / वही लोग सब प्राणियों पर दया रखते हैं। __ धर्म की महिमा का वर्णन MVM ARMromAAILE-IAL:- XKENARIKERAKERAwwxcom / की प्राप्ति भी होती है, फिर भला धर्म से बढ़ कर लाभ दायक है 1 वस्तु और क्या है। 2 धर्म से बढ़ कर दूसरी और कोई नेकी नहीं और उ मुला देने से बढ़ कर दूसरी कोई बुराई भी नहीं है। 3 नेक काम करने में तुम लगातार लगे रहो अपनी पूरी शक्ति और सब प्रकार से पूरे उत्साह के साथ उन्हें 3 करते रहो। 4 अपना मन पवित्र रक्स्रो धर्म का समस्त सार वस / एक ही उपदेश में समाया हुआ है / वाकी और सब बातें कुछ नहीं, केवल शब्दाडम्बर मात्र है। 5 ईर्ष्या, लालच, क्रोध और अप्रिय वचन-इन सब से दूर रहो, धर्म प्राप्ति का यही मार्ग है। 6 यह मत सोचो कि मैं धीरे धीरे धर्म मार्ग का अवलम्बन करूंगा वल्कि अभी बिना देर लगाये ही नेक काम करना शुरू कर दो। क्योंकि धर्म ही वह वस्तु है जो मौत के दिन तुम्हारा साथ देने वाला अमर मित्र होगा। 7 मुझ से यह मत पूछो कि धर्म से क्या लाभ है ? यस एक वार पालकी उठाने वाले कहारों की ओर देखलो और फिर उस आदमी को देखो जो उसमें सवार हो /
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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