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________________ म्पसनेप्पसानमर्षेपविसम्पाखीपु परमं शीर्ष कोप में प्रसादविषये बामविपपस्वमिति मित्रगुहार अर्प-कर में गिना दुलापे स्पतिवो गाना धन की प्पा न रखना श्री विषय में परमशोष रिपासा हवा कोप क समय प्रसपता की पानही रबमा-पेही मिन के LATEFAT -- सीसगतिविवादोन्मीचखयाचनमप्रदानमर्षसमन्म' परोपदोपग्रह पैयन्पामगर्न र मैत्रीमेदकारबानि 85 / मर्प-मिर की स्त्री से संसर्ग मित्र से विवाद मिस: पुन 2 पाचमा करना मिमोनना पन से ही सम्पन्म: रखना मित्र पराध में मिष की निन्दा मुममा प्रपना गही करना प-मिमता के मेदकारण है। नपीरास्पर महबस्ति यस्संगतिमायोति मीरमा म्मममम् 86 मर्प-दुग्ध मे प्रम्प का मित्रही जो संगतिमान मी मह को अपने समान परता। न नीगरपरं महदस्ति पन्मिसितमेव सपर्षपति रपति प स्पषपेग पीरम् 87 अध -प्रम ममी पाई और सहा नही है जो पुपर के साथ मिलती रप की पीता है और अपने परम की गवा करना।
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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