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________________ AMERIODIGERani KAJLR-mneence... KIMEXSTORIXXX (167 ) / अपराधकारिषु प्रशमो यतीनां भूपणं न महीपतीनाम् 37 . अर्थ-अपराध करने वालों पर क्षमा करना यतियों के लिए शेभाजनक है, राजाओं के लिए नहीं। अर्थात् अपराधियों को न्यायपूर्वक शिक्षित करना ही राजाओं का धर्म है न तु दयावश क्षमा करना। 6 धिक् तं पुरुषं यस्यात्मशक्त्या न स्तः कोपप्रसादौ 38 ____ अर्थ--उस पुरुष को धिक्कार है जो आत्म शक्ति के अनुसार काप और प्रसन्नता को नहीं जानता। अर्थात् क्रोध और प्रसन्नता श्रात्म शक्ति के अनुसार किये जाने पर ही शोभाप्रद होते है। विपदन्ता खलमैत्री 36 अर्थ-दुष्टों की मैत्री कष्टों के देने वाली होती है। अध्यापनं याजनं प्रतिग्रहो ब्राह्मणानामेव 40 अर्थ--अध्यापन, याजन और प्रतिग्रह- ये तीन कर्म ब्राह्मणों के ही हैं। भूतसंरक्षणं शस्त्राजीवनं सत्पुरुषोपकारो दीनोद्धरणं रणेऽपलायनं चेति क्षत्रियाणाम् 41 अर्थ--प्रजा की रक्षा करना,शस्त्र से जीवन निर्वाह करना. सजन पर उपकार करना, दीन और दुखियों की सहायता करना, संग्राम में न भागना--ये ही कर्म क्षत्रियों के हैं। वार्ताजीवनमावेशिकपूजनं सत्रप्रपापुण्यारामदयादानादिनिर्मापणं च विशाम् 42, XmAARIKARARI XXXDAAR AKARXXX
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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