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________________ PERMERROREEXXXX मामलामत ला-IICADKACCRACLExxxराला SEARCHEIXAXEYERSIA w ( 146 ) पुरुष के समान ही अधिकार दिए गए हैं / जैसे कि जिस र धावक द्वादश व्रतादि धारण कर सकते है, उसी प्रकार विका भी द्वादश व्रतादि धारण कर सकती है / जिस भकार धावक श्राराधिक बन सकता है, उसी प्रकार श्राविका आराधिक हो सकती है। जिस प्रकार पुरुष साधुवृत्ति ल सकता है, उसी प्रकार स्त्री भी आर्या (निर्ग्रथी वा साध्वी) बन सकती है। जिस प्रकार साध कर्म क्षय करके निर्वाण पद का प्राप्ति कर सकता है, उसी प्रकार साध्वी भी कर्म क्षय कर क मोक्षपद प्राप्त कर सकती है। जिस प्रकार साधु केवल ज्ञान प्राप्त कर जनता में उपदेश द्वारा परोपकार कर सकता है, उसी प्रकार साध्वी भी केवल ज्ञानयुक्त उपकार करती है। जिस प्रकार साधु को पाच प्रकार के स्वाध्याय ( वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा) करने की आशा है, उसी प्रकार आर्या को भी है / अतः जैनशास्त्रों में स्त्री जाति M को वे ही अधिकार है, जो पुरुष के लिये कथन किये गए हैं। इसीलिए जैन सूत्रों में लिखा है कि-पंचदश भेदी सिद्ध होते हैं। म उन भेदों में यह सूत्र भी आता है कि 'स्त्रीलिंगसिद्धा.' अर्थात् स्त्रीलिंग में भी सिद्ध होते हैं। इसलिये यह यात निर्विवाद सिद्ध हो गई कि जितने अधिकार पुरुष को है, उतने ही स्त्री / को भी है। किन्तु ये सव अधिकार योग्यता पूर्वक ही दिए जाते हैं और योग्यता पूर्वक ही उत्पन्न किये जाते हैं। शिष्य-क्या स्त्रीलिंग में कोई जीव तीर्थकर पद भी ग्रहण कर सकता है ? गुरु-सामान्य केवली पद तो स्त्रीलिंग में प्राप्त किया ही। AIRATEXXXXXRADICAAKANKERA MAKom
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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