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________________ --- - - एनना ---- सन्यायाम ( 122 ) पहीमारियरमा रे। किन्तु जिस पुरुष ने पाम भावोंघापन फरसे भारमा में ही मारमा का निमय दिया, विमम रूप अम्पकार तर करने में सूर्य के समान उस मारमा याममे पास पुरपो मेरसी को प्रस्तरारमा मामि यो मिलेंप निपक राय तहस्प प्रत्पम्त नित मोर, निर्षिफरपी इस प्रकार के गयारमा को परमात्मा कड़ा गया। है। पोगनिए मारमा परमारमा को पेप बना कर फिर उसके स्वरूप में उम्मप से जाना चाहिए। क्योंकि उस का प्पान यही होता किमो पासोमो में सो पर है जैसे कि सोमम् मईसा इस प्रकारकमम्पास से प्रास्मा सम्मप हो जाता है। कारण किमास्मसमाधि पास्तव में मुग का कारण होती है किन्तु प्रारम समाधिपासम्पतिको योम्प हैकिपर सबसे पहले पन्द्रिों का सपम पीर मोबन का कि भपरप पर सेवे / कारण कि अब माहार का विवेक रहेगा तब समाधि में माया कोई मी चिम्म ग्पस्थित नहीं हो सकेगा। भप प्रम पहपस्थित होताtoफिन किम पारणामों मापसमाधिस्प होना चाहिए। इस ममरत्तर में कहा जाता है t-1 पार्पिषी पारखा 2 मानेपी पारखा मास्ती पारा पारही पारपा भीर र तत्सरपवती पारपान पाँची। पारणामों मारा मनोति पकान करके भात्म स्वरूप का चिंतन करना चाहिए तथा इन धारणामों द्वारा मारमतीन माना चाहिए। परि ऐसा कहा जाए कि इन पारनामों की संप से, समान - LEGEF=टाग -- -- -
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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