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________________ CICLETJEC6zC9edE " मी निस्यानिस्य और मेरामेर अपवरण तपारन स्पर्ष शाम सेना चाहिए / स्थमावपक्ष मानना भी पस प्रशान बिमित पी। इससिपेभिर कापा फसमदाता किसी प्रकार मी सिरनहीं हो सकता। पदि इस विषय का पूर्व पिपरम देलना हो तो गापाप प्रयों का प्रबहोकन करना चाहिए / इस स्थान पर सो मन एक चिपय का दिममी कराया गया। प्रता माप सत्य की बाके लिये पासे भाव भसस्प का पाम मनी मांति कर लेना चाहिए फिर माष प्रसस्प का परिपाम करके मान सस्प पारप करना चाहिए / पोंकि मारमा भाष सस्प फेदी पारप करने से निर्यात पर की प्राप्ति कर सकताप्रम्पचा नहीं / मिस प्रकार पर पिपय पत्र किपा गया कि रसी प्रकार होनहार (मषितस्पता) पादापि पिपप में मी जानना चाहिए, जिससे भाष सत्सकी पूर्वतया पाहमाकीमा सके। मममम् -- - -
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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