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________________ सानासाल ( 102 ) पुनर्विवाह की पर्मपत्नी / जैसे पाय पासास्परासी प्रकार पर भी बेरकावा-बगतमा फेषह एकही H पर और भरपाता कि मोदी बनाए। प्रय विचार शीस पुरुष समास पिपप पर विचार करें किस में - सत्पता कर सक। इस बात पर भी मपश्य विचार करना चाहिये कि गरी रादि सामग्री प्राम किये बिना पोंकोरपना किस प्रकार : से की गई तयाबापा भी मानते होकिसरिकी रचना के सायदीपद बनाई पक्या उनमोबनाये भीरपड़े भड़ाये मपयुवकों की जो विना माता पिता के प्रपोग से भर की अपार दया से स्पपमेव उत्पम एप पे मूस मापा पैविक संसर पी! यदि पी पेसा कहोगे तब तो या शंका उत्पन्न होती है कि पालक मापमापा माठा के कारण से भी बोका करत सा अनचारोंके तो माता पिता दोनों ही महीपेतो मापा का स सी। परियोमे से रमकी उत्पत्ति पर पीपा से हुई उसी प्रकार पदिक संसात - मी स्पवाही मान गया। इससे पा स्तर की सिय हो / गया किस गपति विषय में उनकी प्रसस्य परपमा उसी प्रकार मापा के विषय में मी प्रसप कम्पना / तपा इसमें पामीशारापन हो सकती है किस्पामापर्व मरपुपक परिक समात बोलते थे या भम्प रणे मी यदि दागे मार्यापर्त केही भरपुपक रिसंसात दासत पे वो पा का रत्पत्र होती है कि पापों सम्प हरा वासियों ना मपराप दिया था। परि कागेस
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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