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________________ PERFE CENGaकम ( 5 ) एक देशमाह मोतीपा सर्वरेण्मार! परि मपम पर स्वीकार किया जायगा तब सर्म म्यापमा पर होती है। पपोंकि सब परमामा सर्प म्यापफ किया मात्र किस म्पाप से मानी शाप! परिमितीप पच स्वीकार किया। आपणा तब पापोप उत्पपोता सिनिपा होने से : फस एफ-म्पतिको मिसमा पा किन्तु मिल गया सबसे। समान किया होमे से ।से कस्सना करो प्पास तो परम्पति को सगी किन्तु मेप सर्वच बरस गपा सिससस को मी महमप बना दिया। पता वस्व गुण परमारमा में मानन्धर पुलियुनही / पूर्वपच-रसमे परिबीरबमा रयापपरी की। इममिको बोपापत्ति नहीं मा सकती। उत्तरप-मियबर ! पण माप घर को परिक्षा: उपादामकारकप मे मानपा निमिठ कारण स पदि उपादान कारण रूप से मानते व तो भापके मत से पाप गुप स्वतादीनप हो जाता हैपोजि प एक। पास बीमक कप बन गया सभापती विचारपरें कि उस मे या किस पर भी! अपितु उसने अपना सस्थानाय माप ही कर मिपा / पोंकि पाही प्रम सर्या पही प्रसव पही परित पही मूर्म ही मराचारी पदी पाचारी नही ग्पराक पदी मोसा वही कामी पी मोमी पी प्रासस पही चांस नही पाप पनी ममार्य पारी सत्यबर बही प्रसत्पबम-इत्पादि पापम्मान सांसारिफ यमासम पासप प्रमी प्रम हुए। परम प्रचर की गति FREERI E R ------- EEELATEL E-HELIVEREDEE
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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