SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 790
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 759 चैनसम्प्रदायशिक्षा / / पेर से चाटता हुमा अथषा सुजगता हुआ वील परे तो बड़ा गम होता है, यदि सूत्र पर उसी की वाहिनी तरफ, श्मशान में, वा परमर पर मूसता हुमा दील पड़े तो बड़ा कृप्ट उत्पन होता है, ऐसे फन फो देख कर माम को नहीं जाना चाहिये, प्रामप्र पठसे समय यदि कुता ऊँग भेठा हुभा कान मस्तक और हदय को सुजलाता हुआ पाटसा हुमा दीख पड़े ममपा दो कुछ खेलते हुए वीस परें वो कार्य की सिद्धि होता। तया यदि कुत्ता भूमि पर छोटता हुमा वा खामी से गर किया जाता हुआ साट पर पेठा वीले तो तो पड़ा केश उस्पाम होता है। ३९-यदि प्राम को गाते समय मुख में भक्ष्य पदार्थ को लिमे हुए पिटी सामने पास पड़े तो गाम मोर कुश्वास होता है, यदि दो विष्ठियाँ मसी हो या पुर 2 शम्बरा हो योभशुभ होता है तथा यदि मिट्टी मार्ग को काट मावे तो प्राम को नहीं माना जाता १०-माम को बाते समम मसर का नाई तरफ होना उत्तम होता है तथा वाइन तरफ होना बुरा होता है। ११-माम को जाते समय यदि मात कास हरिण वाहिनी तरफ वा सो षम पर हे परन्तु यदि हरिण सींग को ठोके, चिर को हिसावे, मन करे, मन करे या " वाहिनी तरफ मी मघा नहीं होता है। १२-माम को बाते समय श्रृंगार का पाई सरफ मोना तथा पुसते समय वाहिनी सरफ पोम्ना उत्तम होता है। यह पचम भध्याय का चकनापरिवर्णन नामक ग्यारहना प्रकरण समाप्त हुआ। इति भी पैनशेताम्बर-धर्मोपदेश-विमाणाचार्य-बिरेफरम्भिशिष्य धीम्सौमाम्मनिर्मिता जैनसम्प्रदायशियाया। पचमोऽध्यायः // . EN ENIMALAIMURTITUNAM +Thurer प्रय समाप्त // प्रप
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy