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________________ ७५२ बैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ म मा विलाप जावे, या यदि सामने वाला होने से मनश्यप सुनाई दे की हुना पड़ा, दही, मेरी,सा, उत्तम फठ, पुप्पमाग, विना पूम की ममि, मोड़ा, हाथी, रस, पेस, रामा, मिट्टी, वर, सुपारी, छत्र (छाता), सिद (तैयार किये हुए) मोबन से मरा हुमा थाल, वेश्या, चोरों का समूह, गहुआ, आरसी, सिकोरा, दोना, मांस, मप, मध्य पोग (यानविशेप), मधुसहित प्रत, गोरोचन, चाप, रस, बीपा, कमछ, सिंहासन, सम्पूर्ण इधियार, मृदा मादि सम्पूर्ण माजे, गीत की नि, पुत्र के सहित सी, क्छो सहित गाप, पोये हुए पनों को लिये हुये पोनी, मोषा और मुँहपची के सदिस साप, विठक के सहित ग्रामण, मचाने का नगारा तथा मापताका इत्यादि शुम पयारे सामन दीस पो भगवा गमन करने के समय-'बामो लामो' 'निकलो' 'छोर दो' 'बर पाममा 'सिदि फरो' 'वान्छित फल को मात करो' इस प्रकार के शुम श्वव्य सुनाई देवं गे पर की सिदि समझनी चाहिये अर्थात् इन मुफुनों के होने से मपश्य कार्य सिद्ध होता है। २-माम को बाते समय यदि सामने वा वाहिनी तरफ छीक होये, कौटे से गए कर बाये या तरुण यावे, वाटा सग बाये, या कराने का शब्द मनाई पर, अपना सार फा या विलाप का दर्शन हो तो गमन नहीं करना चाहिये । ३-भठते समय यदि नीलचास, मोर, भारताव मौर मेरला रष्टिगत हो सो उपमहा १-पम्ते समय भट (मुर्ग) माई वरफ गोल्ना उत्तम होता है। ५-पससे समय बाई ठरफ रामा का दर्शन होने से सम कष्ट दूर होता है। ६-पख्ते समय पाई सरफ़ गपे के मिस्ने से मनोवाम्गित कार्य सिद्ध होता है। ७-चस्ते समय दाहिनी तरफ नाहर के मिटने से उचम ऋदि सिदि होती है। ८-चन्ते समम सम्पूर्ण नसायुषो का बाई तरफ मिलना सभा पुसवे समय वाहना तरफ मिलना मासकारी होता है। ९-यम्से समय गधे का पाई तरफ मिग्ना सपा पुसते समय वाहिनी तरफ मिलना उत्तम होता है। १०-पीछे तथा सामने जब गपा पोसता हो उस समय गमन करना बाहिय । ११-पटके समय यदि गपा मेथुन सेवन करता हुआ मिठे पन मा मभ तमा कार्य श्री सिदि जानी जाती है। १२ पस्ते समय यदि गमा पाई तरफ सिभ में दिखाया हुमा दीसे वो मुन्नत प सूरा होता है। १२-यदि मुमा (तोवा) माई तरफ पाठ सो भय वादिनी तरफ नाते वो महा नाम.ममी हसली पर रेटा हुभा माठ तो भय वा सम्मुम मोठे तो मन । 1- परम पारामा सममा
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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