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________________ पञ्चम अध्याय ॥ ७२७ १ – पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, ये पॉच तत्त्व है, इन में से प्रथम दो का अर्थात् पृथिवी और जल का स्वामी चन्द्र है और शेष तीनों का अर्थात् अग्नि, वायु और आकाश का स्वामी सूर्य है । २ - पीला, सफेद, लाल, हरा और काला, ये पाँच वर्ण ( रंग ) क्रम से पाँचों तत्त्वों के जानने चाहियें अर्थात् पृथिवी तत्त्व का वर्ण पीला, जल तत्त्व का वर्ण सफेद, अनि तत्त्व का वर्ण लाल, वायु तत्त्व का वर्ण हरा और आकाश तत्त्व का वर्ण काला है । ३–पृथिवी तत्त्व सामने चलता है तथा नासिका ( नाक ) से वारेह अङ्गुल तक दूर जाता है और उस के खर के साथ समचौरस आकार होता है । ४ - जल तत्त्व नीचे की तरफ चलता है तथा नासिका से सोलह अङ्गुल तक दूर जाता है और उस का चन्द्रमा के समान गोल आकार है । ५- अग्नि तत्त्व ऊपर की तरफ चलता है तथा नासिका से चार अङ्गुल तक दूर जाता है और उस का त्रिकोण आकार है । ६ - वायु तत्त्व टेढ़ा ( तिरछा ) चलता है तथा नासिका से आठ अङ्गुल तक दूर जाता है और उस का ध्वजा के समान आकार है । ७-आकाश तत्त्व नासिका के भीतर ही चलता है अर्थात् दोनों खरों में ( सुखमना ) खर में ) चलता है तथा इस का आकार कोई नहीं है ' । २ ८-एक एक ( प्रत्येक ) खर ढाई घड़ी तक अर्थात् एक घण्टे तक चला करता है और उस में उक्त पाँचों तत्त्व इस रीति से रात दिन चलते है कि - पृथिवी तत्त्व पचास पल, जल तत्त्व चालीस पल, अग्नि तत्त्व तीस पल, वायु तत्त्व बीस पल और आकाश तत्त्व दश पलै, इस प्रकार से तीनो नाड़ियाँ ( तीनो खर ) उक्त पाँचो तत्त्वों के साथ दिन रात ( सदा ) प्रकाशमन रहती हैं ॥ पाँचों तत्वों के ज्ञान की सहज रीतियाँ ॥ १- पाच रंगो की पाँच गोलियाँ तथा एक गोली विचित्र रंग की वना कर इन छवो गोलियों को अपने पास रख लेना चाहिये और जब बुद्धि में किसी तत्त्व का विचार १ - नाक पर अगुलि के रखने से यदि श्वास तत्त्व समझना चाहिये, इसी प्रकार शेष तत्वों के २–क्योंकि आकाश शून्य पदार्थ है ॥ ३--सब मिला कर १५० पल हुए, सो ही ढाई घडी वा एक घण्टे के १५० पल होते है | ४- 'प्रकाशमान' अर्थात् प्रकाशित ॥ बारह अगुल तक दूर जाता हुआ ज्ञात हो तो पृथिवी परिमाण के विषय में समझना चाहिये ॥ ५-पॉच रंग वे ही समझने चाहिये जो कि पहिले पृथिवी आदि के लिख चुके हैं अर्थात् पीला, सफेद, लाल, हरा और काला ॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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