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________________ ६७० चैनसम्प्रदामक्षिक्षा || मोम्यसानुसार राज्यसता का अच्छा मबंध किया था कि जिस से सब लोग उन से प्रसन्न थे, इस के अतिरिक्त उन के सद्वघवहार से भी सम्बादेवी मी साक्षात् होकर उन पर प्रसन्न हुई थी और उसी के प्रभाव से मश्री बी ने भायू पर भी आदिनाम स्वामी के मन्दिर को बनवाना विश्वारा परन्तु ऐसा करने में उन्हें जगह के लिये कुछ विक्त उठानी पड़ी, सब मनी जी ने कुछ सोच समझ कर प्रथम तो अपनी सामर्थ्य को विस्वका कर ममीन को करने में किया, पीछे अपनी उदारता को दिखलाने के लिये उस ममीन पर रुपये बिछा दिये और वे रुपये जमीन के मालिक को दे दिये, इस ર पश्चात् देवान्वरों से मामी कारीगरों को बुलवा कर संगमरमर पत्थर ( श्वेत पाषाण ) से अपनी इच्छा के अनुसार एक अति सुन्दर अनुपम कारीगरी से युक्त मन्दिर बनवाया, जब वह मन्दिर बन कर तैयार हो गया तब उठ मन्त्री जी ने अपने गुरु बृहस्वरतरगच्छीम जैनाचार्य श्री बर्द्धमान सूरि जी महाराज के हाथ से विक्रम संवत् १०८८ में उस की प्रतिष्ठा करवाई । इस के अतिरिक्त अनेक धर्मकार्यों में मन्त्री विमलवार ने बहुत सा प्रष्म लगाया, जिस की गणना (गिनसी) करना अति कठिन है, धन्य है ऐसे धर्मक भावकों को जो कि लक्ष्मी को पाकर उस का सदुपयोग कर अपने नाम को ममल करते हैं | समय चावी और अबू पर बघोषवल परमार राज्य करता था) इसके पीछे कमे सन् १९७३ से ११७६ तक राज्य या इसके पीछे दूसरे मूवराज ने ईसी सन् ११७६ से ११७८ एक राज्य किया इसके पीछ मोम्मा मीमवेष न रेखी सन् १९१७ से १२४१ तक राज्य किया (इसकी अमस्म्बारी में आबू पर कोटपा और मारायन राज्य करते थे कोटपाल के सुमेष नामक एक पुत्र और इछिनी कुमारी नामक एक कम्मा भी भर्वाद दो सम्तान में छिनी कुमारी अस्मत सुमारी बी भीमषेण ने भेटपाछ से उस कुमारी के देने के किये भैया परन्तु कोटपा ने कुमारी को अजमेर के चौहान राजा बेसुदेव को बनेका पहिले ही व्हयन कर किया था इसलिये कोप से भीमदेव से कुमारी के देने के किये इनकार किया उस कार को नये ही भीमदेव ने एक बड़े सैन् को साथ में लेकर कोटपाथ पर चढ़ाई की और भानूमद के बागे दोनों में पून ही बुद्ध हुआ फिर कार उस युद्ध में पान हार गया परन्तु उस के पीछे भीमवेष को पड़ा और उसी उस का मास हो पया) इसके पीछे त्रिभुवन ने ऐसी सन् १९४१ से १९४४ क राज्य किया (यह ही चालुक्य व में व्यतिरी पुरुष था ) इसके पीछे दूसरे भीमदेव अधिकारी वीर भवन मे गापेका बंश को भाकर जमावा इस मे गुजरात का किया और अपनी राजधानी को अमहिय बाडा पश्न में न करक बोलेरे में की इस स के विलम्मदेव अर्जुन और सारंच इन टीमों में राज्य किया और इसी की बरकरारी में बाबू पर प्रसिद्ध देवालय के निमापक (बनवाने वाले) पोरखाक विमूपणमस्तुर तेजपाल का पडा हुआ हाबुद्दीन गोरी का सामना करना १- इस मंदिर की छम्बरमा मन म जहाँ पर मजा करें क्योंकि इस का पूरा रूप तो न भाकर देखने से होता है
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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