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________________ ५२७ रोटागण ५२८ रंक ५४७ श्रीश्रीमाल स ल ५४८ समघडिया ५२९ लघुश्रेष्ठी ५४९ सही ५३० लक्कड ५३१ ललवाणी ५५० सफला ५५१ सराहा ५३२ लघु खँडेलवाल ५५२ समुदरिख ५५३ सवरला ५५४ सवा ५५५ सरभेल ५५६ साँखला ५५७ सॉड ५३३ लालण ५३४ लिंगा ५३५ लीगा ५३६ लुबक ५३७ लुडा ५३८ लुछा ५३९ लॅकड़ ५४० लूणावत ५४१ लूणिया ५४२ लेल ५४३ लेवा ५४४ कोटा ५४५ लोलग पञ्चम अध्याय | श ५४६ श्रीमाल ५५८ साहिबगोत ५५९ सॉडेला ५६० साहिला ५६१ सावणसुखा ५६२ सॉबरा ५६३ सागाणी ५६४ साहलेचा ५६५ साचोरा ५६६ साचा ५६७ सिणगार ५६८ सियाल ५६९ सीखा ५७० सीचा-सीगी ५७१ सीसोदिया ५७२ सीरोहिया ५७३ सुदर ५७४ सुराणा ५७५ सुधेचा ५७६ सूर ५७७ सूधा ५७८ सूरिया ५७९ सूरपुरा ५८० सुरहा ५८१ स्थूल ५८२ सूकाली ५८३ सूँडाल ५८४ सेठिया ५८५ सेठियापावर ५८६ सोनी ५८७ सोनीगरा ५८८ सोलखी ५८९ सोजतिया ५९० सोभावत ५९१ सोठिल ५९२ सोजन ५९३ संखलेचा ५९४ सचेती ५९५ संड ५९६ संखवाल ह ५९७ हगुड़िया ५९८ हरसोरा ५९९ हड़िया ६०० हरण ६०१ हिरण ६०२ हुब्बड़ ६०३ हुड़िया ६०४ हेमपुरा ६०५ हेम ६०६ हीडाउ ६०७ हींगड ६०८ हडिया ६०९ हस ६६१ शाखागोत्रों का संक्षिप्त इतिहास ॥ १ - ढाकलिया - पूर्व समय में सोढा राजपूत थे जो कि दयामूल जैन धर्म का ग्रहण किये हुए थे, कालान्तर में ये लोग राज का काम करते २ किसी कारण से रात को भाग निकले परन्तु पकड़े जा कर वापिस लाये गये, अत ये लोग ढाकलिया कहलाये क्योंकि पकड़ कर लाये जाने के समय ये लोग ढके हुए लाये गये थे । २- कोचर-इन लोगों के बड़रे का नाम कोचर इस कारण से हुआ था कि उस के जन्म समय पर कोचरी पक्षी ( जिस की बोली से मारवाड़ में शकुन लिया करते हैं ) बोला था । १-इन ( शाखागोत्र ) को मारवाड में खॉप, नख और शाख आदि नामों से कहते हे तथा कच्छ देश के निवासी ओमवाल इन को "ओलख" कहते है, मारवाड़ से उठ कर ओसवाल लोग कच्छ देश मे जा बसे थे, इस बात को करीब तीन सौ वा चार सौ वर्ष हुए हैं ॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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