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________________ २१८ चैनसम्पबामशिक्षा। में भाये, वहाँ राना भी सवयसिंह भी ने इन का बहुत मान सम्मान किया वहाँ से रवाना हो कर बगह २ सम्मान पावे हुए मे धामन्द के साथ बीकानेर में आ गये, इन सब व्यवहार से राम श्री पल्माणमन बी महाराज इनपर बरे असम हुए। इन (मुरता संग्रामसिंह जी) कर्मचन्द नामक एक बड़ा मुद्धिमान् पुष हुवा, चिस को बीकानेर महाराम भी रापसिंह जी ने अपना मन्त्री नियम किया। राज्यमन्त्री बच्छावत कर्मचन्द मुहसे ने क्रिया के उतारी मर्मात् स्यागी पैरागी सर सरगच्छामार्य भी बिनचन्द्र परि मी महाराज के भागमन की बधाई को सुनानेवाले यापकों को बहुत सा द्रव्यप्रदान किया और बरे ठाठ से महाराम को मीकानेर में मने, उनके रहने के लिये अपने पोड़ों की पुरोठ लो कि मीन बनवा कर तैयार करवाई भी प्रदान की भर्मात् उस में महाराम को सराया और विनति पर संवत् १६२५ पतुर्मास परवाया, उन से पिपिपूर्वक मगरतीसूत्र को सुना, चतुर्मास के बाद माचार महाराज गुजरात की तरफ पिहार कर गये। कुछ दिनों के बाद मरणवच बीननेरमहाराब की सरफ से मन्त्री कर्मचन्द र मालर पावशा पास गौर नगर में माना हुमा, वहीं का प्रसंग है कि-पान पर मानन्द में बैठे हुए भनेक गेगों का नामाप हो रहा मा उस समय भानर बाद शाह ने राज्यमत्री कर्मचन्द से पूछा कि-"इस गस्त मनमिया कायी मैन में न " इसके उपर में धर्मपन्द ने कहा कि-जैनाचार्य भी पिनपन्द्र सरि भो कि इस समय गुमरात देश में धर्मोपदेश करते हुए विचरते है" इस बात को सुन कर पादचार में माचार्य महाराज के पधारने के लिये गहौर नगर में अपने भावमियों को मेव र उनसे बहुत भामह मिा, भत उक्त आचार्य महाराज विहार करते हुए कुछ समय में महरि नगर में पपारे, महारान के महाँ पधारने से विनपर्म नमो कुछ उपोस हुभा उसन वर्षन हम पिसार के भय से यहां पर नहीं मिल सकते हैं, यहाँ का हाल पाठी सपाम्माम भी समयमुन्दर मी गणी (मो किपड़े नामी विद्वान् हो गये)मना हुप प्रापीन सोत्र मादि से विदित हो सकता है। १-बापी पी मरेस मा मवर बरे माम पपसीस मे पाये कि हा एप सो पांच मुठो बप उपमे पापे काग्रेडोपान मा की बधाई समरूप पीसरे मामनम्न हैना भी बुपरमार के नाम परमपद पा रिया ॥ महत्व दिन से परे रणपरे नाम मेरमातोश भव मी बोममेर में हो पौर में मोर और पग मासमीर साहस में प्रचार विसिशित मम्मों पर पुखप्रम्य मोसमे पोनर -महरपतिपय छ रोष पाये इस मिमे रोष पौ पर हिथियेएउवम सुप मामि पुषी बियर पिर मरम्ठ पठी । पपपप गुबर में प्रतिबोपत १ मति मोबीपित साल भी पमनमुहर के गुर मापन । पयर परिसर
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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