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________________ ५१६ जैनसम्प्रदायश्चिक्षा (भन ) से भी युद्र करने को बाये तव पाहे पावक प्रथम शम को न भी चगो परन्तु जन शत्रु उस पर सन को पगये मभवा उसे मारने को भाये उस समय उस भाका मी मधु को मी मारना ही पड़ता है, इसी प्रकार का कोई सिंहादि हिंस (हिंसक) बन्नु भावक को मारने को मापे तम रस को मी मारना ही पड़ता है, ऐसी दक्षा में समय से भी हिंसा का पता नहीं हो सकता है, इस सिये उस शेप पाँच विश्वा दया में से मरे पापी माती रही, पब केवल गई विधा ही दमा रह गई अर्थात् पर यह निबम रहा कि-मो निरपरापी प्रस मात्र नीर टिगोपर हो उसे न मा, बब इस में भी वो मेव होते हैं-सापेक्ष और निरपेय, इन में से मी सापेक्ष निरपराधी जीन की क्या भाषक से नारी पारी मा सकती है, क्योंकि जब भाषक घोड़े, पेठ, रम मोर गाली मावि सगरी पर चढ़ता है सप उस पोरे भाविको हाँकते समम उस के पातुक आदि मारचा पाव है, यपपि उन पोड़े और मैक मावि ने उस का कुछ अपराप नहीं मिला है क्योंकि परे पात से भाजपा के भोरे भावरमठवभाव कमी पुस मारमा अहिले परम्त मनपा करम निम्म्म ममी क्यालिनिसाम म भाव से स्थानों में भार पर परवानिया रोधी निरामिन सूत्र सबा भी मममी सत्र में पाई-परमान पर नायक बाप प्रवभारी बैम पत्रिन ने पारम के समय सागुम पुग र मम पर सरासेपारे प्रिये उद में परमपमा पएम्म शिवमाया भम्स में एक कीमों में से अपमी मनु पाप मन र बारा रा (मापन पर करेए रोनों सूओं में मोरा) यो । उचजब पत्रिम मे मफमा सांसात्तब भी पूराना और धार्मिक मने भी पूरा पिसा उस विपर में पुन सूत्रभर साथी रेवा परचमार से रमेश गम के किमान सूत्रों में यह भी बनी मगवीर सामी के मध पीर पारातपाय भाग म राय मे बिक राजा के साथ बाण सुरकिरे भीर र में से एक रीपुर में 14 (एक भोरमस्य समस) मनुष्य मरे, इसी प्रभा पाप से प्रमाण इस विषय में जगमा वापर पालिकामा मेरमा में पास में मेरे निपेष परिवार पाले मापात मप्ले प्रचार माम ये समय-सरेपरमा किनेबाज एब्ध प्रणय प्राय ने रे से पासप्रेसर मिलेगा मा बपरापी मे सिवा बनेल ने) मयी समि भाप्रपरिम्स (प्रायविनत) मवरण इस पग में पर सवा (जोपाराम में से परिसत प्रया) पाना हमारे सबसेपर समक्ष पेरियारसप्रेस में जाने मेरे ऐप की हमारे प्रयास परम पापमपुरमाने से मारक परिपन पर तास पब में नम्पम को हो भने पक्लिाजिमममम मममी ने मd पर समय समय पर निभा पासोहर पाने सरिता सिना पास (अ) भी मोहब।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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