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________________ १८८ बैनसम्पदापरिक्षा ॥ मिलाए ५० टके भर वे तमा सिरी ५० टके भर लो, पास के गास्ते जठ १५ सर लवे, जब जल चार मेर माफी रहे. उप मफरी का दूप, सतासर पा रस, सामु प रस, फांजी भोर दद्दी का जल, प्रत्पफ पार २ मेर सभा प्रत्येक के पास के लिये जम १५ सेर लरे, जन पार सेर रह जाव तब उसे छान ल, फिर प्रथा २ काध और पत्त रामा भैरगा मा रोप नम भार भासम्म न प्रसपर मास में मारमा निमा र क गर्म भरमस प इन पम्पमुच पधापान (भषाम) त पर (RAI) गर्दन पर पाना भीर भपबाम (रामों का पाना) गए गा । म का प्रतिमपनामा म मम्म भरकर पु.र उन में से प्रतिम नम उमर मान स. ना --प्राव गस नम करनपार परसार निमत समय म्याम पाया। परभान पचात्, मयुन या ममपाग पर मन परन फ पी. भवन पास (मगान) पीछ म मिनिक पीछ भान पीछ मन में सन पर बमन पाउन यापकास में प्रतिमप मम्प ने मर परिचान २ रि-पोती भान से कर पप्रमुग में भापार्यता ग्रन ना दिस प्रितिमन नम्म उत्तम रीति से पार मुड में भाप हुप पानिममय मह वाहिय मिन उसे भूना पाहिम । मतिमई मस्य । मधिकारी-तीन मनु तुपयेगी मुरापोपरोगी पामा भीर . स प्रतिय तिमी है। प्रतिमश नम्य फगुण-प्रतिमा मम्म उपयोग से मारक रोग का मही रोवर में गुमसरन परत पामें प्रश्न समा मिरवा समय नम्म से इम्तियों चिपरी है.मा भीम भारी गा, पर भार मानपनी समर पापम्प मा भम्मान रपन मृ सब पापा से जाम की विधि मन करन र पधात्, मग भीर मप्रातिप्राम रमे व धूमपान आप प्रसव मत पर गीभे पपन और पम रहित स्थान ENA (सीमा) म्य बन्न हिसे तप म माता मा एममा पाईये सपने पसार ला पानी में बम में कि पारिस पछि मारमनी पर मसदनी पारिस 4 साने बारी भारिती पर पा चीप से या किसी स मुचि पापम पमा स प पारम ठने पाय रीति मैना मार में पपी पारिक जिस समय मास में मम शाम चार पस गेगी ग्रेवारिक माप महिला पनघोग मई महभीर सिपर मार स्मिन भारि महारराव पापापात मीवर मी पापामार ऐसा भने से ta मा मनपा भार नपीमा रसा मस प्रेम (मार भीतरी जी)" पहुंचने परन्त सिर रखना चाहिसे भषा नियह मई माया पारि पाउडर मुख में बाये पुरा साभारिप मसकने पाम् मन में मम्ठाप म करे भूम पान साग में श्राम बसपा पमा मिनर काम सोपे पौवा पा रहे कामस मघा राने के पश्चात् पूमपान तथा प्रसपान रिचारी ना? मसरा मचा मान पाने में पर प्रसाना माभपतरमा भागारमा मानि प्रमा सिन भानियों में प्रणमात्र स्माधिन एव।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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