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________________ ५६३ चतुर्थ अध्याय ॥ (चकत्ते ) पड जाते है, मूत्राशय अथवा वृपण का बरम (शोथ ) हो जाता है और कभी २ पेशाब भी रुक जाता है। यद्यपि सुजाख शरीर के केवल इन्द्रिय भाग का रोग है तथापि तमाम शरीर में उस के दूसरे भी चिह्न उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे-शरीर के किसी भाग का फूट निकलना, सन्धियों में दर्द होना, पृष्ठवंश (पीठ के वांस ) में वायु का भरना तथा आँखों में दर्द होना इत्यादि, तात्पर्य यह है कि सुजाख के कारण शरीर के विभिन्न भागों में भी अनेक रोग प्रायः हो जाते हैं। चिकित्सा -१-सुजाख का प्रारभ होने पर यदि उस में शोथ (सूजन) अधिक हो तथा असह्य (न सहने योग्य ) वेदना (पीड़ा) होती हो तो वेसणी के ऊपर थोड़ी सी जोंके लगवा देनी चाहिये, परन्तु यदि अधिक शोथ और विशेप वेदना न हो तो केवल गर्म पानी का सेक करना चाहिये । २-इन्द्रिय को गर्म पानी में भिगोये हुए कपड़े से लपेट लेना चाहिये। ३-रोगी को कमर तक कुछ गर्म ( सहन हो सके ऐसे गर्म ) पानी में दश से लेकर बीस मिनट तक बैठाये रखना चाहिये तथा यदि आवश्यक हो तो दिन में कई वार भी इस कार्य को करना चाहिये। ४-पेशाब तथा दस्त को लानेवाली औषधियों का सेवन करना चाहिये । ५-इस रोग में पेशाब के अम्ल होने के कारण जलन होती है इस लिये आलकली तथा सोडा पोटास आदि क्षार (खार) देना चाहिये। ६-इस में पानी अधिक पीना चाहिये तथा एक भाग दूध और एक भाग पानी मिला कर धीरे २ पीते रहना चाहिये। ७-अलसी की चाय बनवा कर पीनी चाहिये तथा जौ का पानी उकाल ( उबाल) कर पीना चाहिये, परन्तु आवश्यकता हो तो उस पानी में थोड़ा सा सोडा भी मिला लेना चाहिये। ८-गोखुरू, ईशवगोल, तुकमालम्बा, बीदाना, बहुफली तथा मौलेठी, इन में से चाहे जिस पदार्थ का पानी पीने से पेशाव की वेदना (पीडा) कम हो जाती है। ९-सब से प्रथम इस रोग में यह औषधि देनी चाहिये कि-लाइकर आमोनी एसेटेटिस दो औंस, एसेटेट आफ पोटास नब्बे (९०) ग्रेन, गोंद का पानी एक औंस तथा कपूर का पानी तीन औंस, इन सब दवाओं को मिला कर (चौथाई ) भाग दिन में चार वार देना चाहिये, परन्तु स्मरण रहे कि उक्त दवा का जो प्रथम भाग (पहिला चौथाई हिस्सा) दिया जाये उस के साथ दस्त लाने के लिये या तो चार ड्राम विलायती निमक मिला देना चाहिये अथवा समय तथा प्रकृति के अनुसार दूसरी किसी औषधि को
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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