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________________ ५५० जैनसम्मवायशिक्षा परीक्षा करते हैं अमया दूसरे किसी के द्वारा उन की परीक्षा फरा लेते है उसी प्रकार फुचल तथा मूम पैच की परीक्षा का भी फर स्ना पानसरे से फरा लेना सर्वसाधारण से भत्यावश्यक (पात जसरी) है, परन्तु महान् चोक का विषय है कि-पमान में गये साधारण और गरीप लोग तो क्या फिन्तु पो २ भीगान् सोग भी इस पिपय में कुछ भी ध्यान नहीं देते है, इसी फा यह फल है. फि-सुखस अपपा मूस पैप की परीक्षा कारन यासा शायद ही सो में से एकाध मिळवा दे, इस सिय सर्वसाधारण से उमारा यही निय दन दे कि-दूध को मथ (निगे) पर घुत निकाम्ने के समान जो हममे इस प्रप इसी अध्याप के मारम्भ में पापिया का सार लिसा है उस को भरफास (फुर्सत ) : समय में पाठकगण दूसरी प्य (फिजूल ) गप्पा में Bथा नाना प्रभार स्पित रिसो पदानिमा की पुस्तकों के पढ़ने में भपने भमत्य (पेशकीमती) समय को न गैया कर यदि पिपारा फरें तो उन को अनेक प्रकार का साम हो सकतामा इसके प्रभाव से उन में कुसन भा मूर्स पेप की परीक्षा करने की क्षति भी उत्तम दो सकती है। ___भम पर फदी हुई पिस्सिामों के सियाप-जो अंग्रेजी सभा देवी दवाइमा इस रोग पर पूर्ण छाभ फरती हैं उन्हें विसते दी १-पोटास भायोगाइड १५ मेन, सीकर हाइसार पीरी परकारीट २ राम, एक्स्ट्रार सारसापरीछा ३ राम और चिरायते की पाप ३ भास, इन सब भोपों को मिला फर उस फे सीन भाग परने पाहिमे सभा उन में से एक भाग को सपेरे, एक भाग को गभ्याए में (दोपहर फो) और एक भाग को शाम को पीना पारिये, यह दवा मति उपम दे अर्थात् गाफे सर्म रोगों में भति उपयोगी ( फायदेमन्द) गानी गई है, इस दपा में जो पोटास भामोहर फी १५ मेन की मात्रा मिसी है उस के नाम में एक इप के पार २० मेन श्रीमाप्रा पर देनी पाहिमे मार हफ्ते के पाद उफ पा २० प्रेम टासना पाटिये तथा नसरे हफ्ते में २५ मेन प्रफ पड़ा देना भादिमे, इस दवा को पारंग पर दी यपपि तीन दिन तफ शेपा (फ भर्थात् गुफाम) हो जाता है परन्तु वह पीछे माप ही दो पार दिन में पन्द हो पाता है, इस लिये हेमा के हो जाने से सरना नहीं पाहिसे तभा दपा को परापर खेते रहना चाहिये भीर इस दपा ऐपन पो मदीने क फरना पाहिये, यदि किसी कारण से इस का दो महीने तक सेवन नबन -समान भी ममुप पा पपा डिसेमा बिभा पधारा पाने भारिपोपहाँ पालो पोवारी पनि भय बना पता -11मिन। मधमाकपा-मार पाको मभ नेपाले भरणे प्रपरमे मा सिराप्रपामा AIR पहा भारि भने पर RC का पापो ग म पानपूरणपारण मन भी ममम भीर 1 व परीक्षा की नई un - -
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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