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________________ जनगम्भवायशिक्षा ॥ बादी के साथ म जो पर होती है उसके होने का कारण यही पर उस धन (पानी) ही विपदमार हाने का मूल कारण प्रत्येक परिजका विशिष्ट पिपर, यद शिक्षापण नरिया में भाग मे पक्षण ( मात्र) के भीतरी पिण्ट में पाहुमता दे, उस विप क पाने से उस भागका नाम हो जाता है और पदी मापसी गोटसप गेंदा जाता है। टिन पानी का पिप रुधिर के मार्ग से राम शरीर में फंस जाता है परन्तु गू (नरम) पाँदी का विप फेवल 1 पिपण मी मानता भवात् सबमरीर में दी प.सतार। घिफिरसा-१-चदमारंभ में रागी का पलने फिरने का निषेध करना पाहिये, भार से अधिक पठन रिने नहीं देना हमे, गर्म पानी का रोकना चाहिये वा उस पर घेळाडाना, भापोटीन टियर, अषमा लीनीगेंट लगाना पारिसे हवा भार स्मता अनुसार कि लगानी पादिय ।। २-नाम से पा को पाकर माधना नादिपे, भषया गिन्नर सपा पक्षमीनी का चीरा पापना भाहिये। ३भने भार गुरको पानी में पाट फर (पीसकर ) 31 का सप करना चाहिये। -जब पर पड़नेपर पापे तब उसपर पारयार भडसी ही पास्टिग पधिनी पाहिले, पीछे उस फो शमसे पोर देना चादिमे, जपा उस निमर (उपरी भाग) प फास्टिग पाटास लगा कर मार देमा पादिप पाटोगे माद उस से उपर गरम पट्टी छगानी चाहिये । ___५-कभी २ ऐसा भी होता है कि उस का मोटा सा गदरा धन पा जाता है और उस पर पगड़ी की माटी फोर सरक जाती है परन्तु उस में पदमी हाया दे, पन कभी ऐसा दो या उस पगली की माटी फोर अनिल राणा भादिक्ष मा उस पर प्याग भेस और भागोमग पुरफाना पाहिये सबारे प्रेसी पीटेट का गम्हग लगाना पालि मममा रराफर प पानी लगाना पाहिये। ६-टिन भाती ने साल मूर पर होती भात् प६ Tो पाती है और न पहे. भषिक पद परती है, पह पर इन ऊपर कटे हुए उपचार (उपापा) से भी मी को १- franfi भारी धारणा र समाधी प्रभा भाभी मत्सरनेमा प्रभारीभर पार sathबर पास भारगर पर गभाना दुसरा - पापा UANTA पापीर पर जाने बार va परोसने । on बार (सी) मामा घरमा Janu - - - - -
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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