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चतुर्थ अध्याय ॥
५०७ एक मासे की गोलिया बनानी चाहिये तथा शक्ति के अनुसार इन गोलियो का सेवन करना चाहिये, इस गोली का नाम राजगुटिका है, यह अजीर्ण, वमन, विपूचिका, शुल और मन्दामि आदि रोगों में शीघ्र ही फायदा करती है ।
इन ऊपर कहे हुए साधारण इलाजो के सिवाय इन रोगों में कुछ विशेष इलाज भी है जिन में से प्रायः रामबाण रस, क्षुधासागर रस, अजीर्णकण्टक रस, अग्निकुमार रस तथा शूलदावानल रस, इत्यादि प्रयोग उत्तम समझे जाते हैं ।
विशेष सूचना-अजीर्ण रोगवाले को अपने खाने पीने की संभाल अवश्य रखनी चाहिये क्योंकि अजीर्ण रोग में खाने पीने की संभाल न रखने से यह रोग प्रवल रूप वारण कर अतिभयंकर हो जाता है तथा अनेकरोगों को उत्पन्न करता है इस लिये जब अजीर्ण हो तब एक दिन लंघन कर दूसरे दिन हलकी खुराक खानी चाहिये तथा ऊपर लिखी हुई साधारण दवाइयों में से किसी दवा का उपयोग करना चाहिये, ऐसा करने से अजीर्ण शीघ्र ही मिट जाता है, परन्तु इस रोग में प्रमाद (गफलत) करने से इस का असर शरीर में बहुत दिनोंतक बना रहता है अर्थात् अजीर्ण पुराना पड़ कर शरीर में अपना घर कर लेता है और फिर उस का मिटना अति कठिन हो जाता है।
बहुधा यह भी देखा गया है कि बहुत से आदमियों के यह अजीर्ण रोग सदा ही बना रहता है परन्तु तो भी वे उस का यथोचित उपाय नहीं करते है, इस का अन्त में परिणाम यह होता है कि-वे उस रोग के द्वारा अनेक कठिन रोगों में फंस जाते है और रोगों की फर्यादी (पुकार ) करते हुए तथा अत्यन्त व्याकुल होकर अनेक मूर्ख वैद्यों से अपना दुःख रोते हैं तथा मूर्ख वैद्य भी अजीणे के कारण को ठीक न जान कर मनमानी चिकित्सा करते हैं कि जिस से रोगी के उदर की अग्नि सर्वदा के लिये बिगड़ कर उन को दुःख देती है तथा अजीर्णरोग मृत्युसमय तक उन का पीछा नहीं छोडता है, इस लिये मन्दाग्नि तथा अजीर्णवाले पुरुष को सादी और वहुत हलकी खुराक खानी चाहिये, जैसेदाल भात और दलिया आदि, क्योंकि यह खुराक ओषधि के समान ही फायदा करती है, यदि। इस से लाभ प्रतीत (मालूम ) न हो तो कोई अन्य साधारण चिकित्सा करनी चाहिये, अथवा किसी चतुर वैद्य वा डाक्टर से चिकित्सा करानी चाहिये।
१-इन सब का विधान आदि दूसरे वैद्यक ग्रन्थों में देस लेना चाहिये ॥
२-परन्तु शाम को अजीर्ण मालूम हो तो थोडा सा भोजन करने में कोई हानि नहीं है, तात्पर्य यह है कि--प्रात काल किये हुए भोजन का अजीर्ण कुछ शाम को प्रतीत हो तो उस में शाम को भी योडा सा भोजन कर लेने में कोई हानि नहीं है परन्तु शामको किये हुए भोजन का अजीर्ण यदि प्रात काल मालूम हो तो ओपधि आदि के द्वारा उस की निवृत्ति कर के ही भोजन करना चाहिये अर्थात् उसी अजीर्ण में भोजन नहीं कर लेना चाहिये ।