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________________ १८० चैनसम्प्रदायशिमा ॥ ६-ज्वर के प्रारम्म में ठपन, मध्य में पापन सपा का सेवन, अन्त में कहा तमा फपैसी दवा का सेवन तथा सम से मन्त में दोष के निकाल्ने के मेि जुभव प्रमेना, यह चिकिस्साका उखम कम है। ७-ज्जर का दोप यदि कम हो तो पन से ही आता रहता है, यदि दोष मध्यम हो सो लंपन भौर पाचन से नाता है, यदि दोप बहुत पढ़ा हुभा हो तो वोप संयो पनप उपाय करना चाहिये । या मी स्मरण रखना चाहिये कि सात दिन में वायु का दस दिन में पिच प्र भोर गारह दिन में कफ का ज्वर पकता है, परन्तु मदि दोपमा मपिक मधेप हो तो उपर को हुए समय से दुगुना समयता मग बाता है। ८-ज्वर में नमतफ दोपों के भावकी सवर न पड़े तमतक सामान्य चिकित्सा फरनी चाहिये। ९-मर के रोगी को निर्यात (पास से रहित ) मकान में रखना चाहिये तमाला की भावपकसा होने पर पंसे की हवा करनी चाहिये, भारी तथा गर्म कपड़े पहराना भौर मोताना पाहिये तपा पातु मनुसार परिपक (पत्र हुमा) पर पिाना चाहिये । १०-वरवाले को कमा पानी नहीं पिगना पाहिसे' सबा गारवार बहुत पानी ना॥ पिगना चाहिम, परन्तु बहुत गमी तमा पिच के ज्वर में यदि प्यास हो तगा वार होता हो तो उस समय प्यास को रोकना नहीं चाहिये फिन्तु पाकी के सब ज्वरों में समान -सर प्रारम्म में पनपने से रोपाप्रपात सेवा, मप पापन बाके सेवन से मन से भी म पोए रका रोपों पाप से भावासमन्त में मां वप पका * सेक्स से भमि परोपन तथा रोपों पसंहमम होता या पप से मत में गुमय मेने से रोचक संपोषन मेने केश परिये पाव जिस से सीघ्र हीयेमता प्राप्त होती है। नोहा-सप्त रिसस पर उम्मबीरा मपम बन । विसम्पर पुष बबई गरी पुरातन मान ।। पर पित्तवर परिणाम पर वापस प्य। एस मिस माम्स पणन मि सम मार ॥१॥ भीषण भने प्रप में पर मानो के स म्मान मिले बाम । सो गररे प्रेम प्रेसे पासिमने से सर में रविवाद: ४-भव पिता -पाय रोकने से (प्यार में पाक देने से) प्राय रे रो प्या । और बेहोशी कीमा में प्रामों सभी माम ऐकस लिये सब रमानों में 4 मास ला पाहिम इसी प्रपर रात मे ल-तुप ममम्वर व त्या मानो प्रमाप नेगी सहिये तमत्त (पास है पीडित) प्राप पारप ( माप्रपारप रवैयम्स) काय पनि लामो सनी लिय वा -याच प्रेरोमा पर प्ररिने या बहुत बोग जाना चाहिये।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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