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________________ जैनसम्मवायशिक्षा || चिकित्सा - १ - सन्तत उचर- इस ज्वर में - पटोक, इन्द्रमय, वेबवार, सिमेन और नीम की छाल का काम देना चाहिये । १७४ २ - सततज्वर -- इस ज्वर में - श्रायमाण, कुटकी, भमासा और उपलसिरी का काम देना चाहिये । ३- अन्येद्युष्क (एकान्तर ) – इस ज्वर में वास्त्र, पटोल, कतुमा नीम, मोग, इन्द्रमव सभा त्रिफळा, इन का काम देना चाहिये । 8 - तेजरा - इस वर में - बाळा, रक्तचन्दन, मोम, गिलोय, पनिया और सोंठ, इन का काम शहद और मिश्री मिला कर देना चाहिये । ५ - चौथिया – इस यर में - असा, आँवला, साम्षण, देवदार, जहर और सोंठ का काम शहद और मिश्री मिला कर देना चाहिये । सामान्य चिकित्सा - ६ - दोनों प्रकार की (छोटी बड़ी) रींगणी, सोंठ, मनिन्द्य और देवदार, इन का काम देना चाहिये, यह काम पाचन है इस किये बिपमज्वर तथा सब प्रकार के ज्वरों में इस काम को पहिले देना चाहिये । - मुस्तादि फाप -- मोग, भूरींगंणी, गिलोय, सौठ और बबला, इन पांचों की उकाली को शीतल कर शहद तथा पीपल का चूर्ण डाल कर पीना चाहिये । ८- स्वरांकुश - शुद्ध पारा, गन्धक, वत्सनाग, सौंठ, मिर्च और पीपल, इन छष पदार्थों का एक एक भाग तथा शुद्ध किये हुए बतूरे के बीच दो भाग लेने चाहियें, इन में से प्रथम पारे और गन्धक की कमी कर शेष चारों पदार्थों को कपड़छान कर मा सब को मिम्म कर नींबू के रसमें खूब खरेल कर दो दो रती की गोसियों बनानी चाहिये, इन में से एक या दो गोलियों को पानी में या भवरस्य के रस में भगवा सौठ के पानी में फ्बर जाने तथा ठत्र उगने से भाप घण्टे अथवा मण्टे भर पहिले लेना चाहिये, इस से ज्वर का माना तथा ठंड का लगना बिकु बन्द हो जाता है, ठड के उबर में में गोरियां किनाइन से भी अधिक फायदेमन्दे हैं । १–पहिले इसी कार के ऐसे से दोषों का पाचन होकर उसका वैमन्य हो जाता है व जमी प्रवक्ता मिट जाती है और प्रवक्ता के मिट जाने से पीछे ही हुई साधारण भी भोपभि कीघ्र ही त विशेष फायदा करती है । १- भूमी वर्षात् क २-बाये हुए स्वर के रोकने के किये तथा ठंड सपने को पूर करने के किये बह उत्तम भोप है ४पर कर अर्थात् परमेंट कर ५-क्योंकि- मैं पोलियों के थे पिय कर तथा शरीर में उप्थता का सधार कर सुधार को मिटती है और शरीर में प्रति को भी उपकरण है
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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