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________________ १५२ बेनसम्प्रदायशिक्षा ॥ परन्तु इस प्रकार से सरीर के सपने का क्या कारण है और वह (सपने की) क्रिया किस प्रकार होती है यह विषय बहुत सूक्ष्म है, देखी नैयाशासने भर के विषय में ही सिद्धान्त ठहराया है कि वात, पिच और कफ, ये तीनों दोप भयोम्म आहार और बिहार से कुपित होकर चठर (पेट) में जाकर ममि को बाहर निकाल कर ज्वर को उत्पम करते है, इस विषम का विचार करने से यही सिद्ध होता है कि-बात, पित्त और कफ, इन तीनों दोपो की समानता (परापर रहना) ही भारोम्मता का चिद है और इन की विस मता अर्थात् न्यूनापिकता (कम या ज्यादा होना) ही रोग का निभा उक दापों की समानता और विषमता केमन माहार मौर निहार पर ही निर्मर है। इस के सिवाय-इस विषय पर विचार करने से यह मी सिद्ध होता है कि असे शरीर में वायु की पदि दूसरे रोगों को उत्पम करती है उसी प्रकार मह वावग्नर मी उस्पस करती है, इसी प्रकार पिछ की अपिकसा अम्य रोगों के समान पिसमर को तथा कफ की भपिकसा अन्य रोगों के समान फज्मर को भी उत्सभ करती है, उक कम पर ध्यान देने से यह भी समझमें आ सकता है कि-इन में से दो दो दोपों की भषि कता भन्य रोग के समान दो दो दोपों के सामवासे नर को उत्पम करती है और तीनों दापों क विस्त होने से ये (तीनों दोप) मन्य रोगों के समान तीनो कोर्षों , यमबासे त्रिदोप ( सक्षिपात ) ज्वर को उत्पन्न करते ॥ वर के भेदों का वर्णन ॥ न्वर के मेवों का वर्णन करना एक बहुत ही कठिन विषय है, क्योकि मर की उत्पत्तिके अनेक कारण है, सभापि पूर्वापायों के सिदाम्त के अनुसार पपर फे परम को महाँ दिसावे हैं-मर क कारण मुत्सठया दो प्रकार है-मान्तर भार पाप, इन में से भान्तर कारण उन्हें परसे हैं जो कि शरीर के भीतर ही उस्म होते हैं तथा पाय कारण उन्हें कहते ह जो कि माहर स उत्तम हासे है, इन में से भान्तर कारणों के दो भेद -भाहार विहार की विषमता अर्थात् मागर ( मोमन पान) भादि की तमा बिहार (रोसना फिरना सभा सीसन आदि) की पिपमठा (विरुव पेश) से रस फा बिगाना भी उस स मर कर भाना, इस प्रमर कारण से सर साधारण पर उस्पन हो , जमे रि-सीन सो प्रथम २ दोपगारे, तीन दो २ वोपवासे तमा मिभित सीना दोपकाठा इत्यादि पनी कारणों से उत्पम हुए जरा में विषमज्वर आदि उपरी का भी समावस हा गाठा घरीर के अन्दर छोभ (सूमन) तमा गांठ भावि का हाना भाम्सर परण प्रदूमरा भर भभो भीवरी धाम ममा गठि मादि वेग से पर
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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