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________________ १३० जैनसम्प्रदायविदा ॥ १-पतला दस्त-मपी से अभया संग्रहमी के रोग से पतसे वस्त होते हैं, मदि मक में खुराफ का कमा भाग पीसे वो समझना चाहिये पि-मर का पापन टीक रीठिसे नहीं होता है, माता में पिस पाने से भी मर पवन मोर नरम भावा है, मतीसार और देने में दम पानी के समान पतछा भासा है, पवि क्षम रोग में विनाकारण ही पतला दस्त आये तो समझ लेना चाहिये कि रोगी नहीं मचेगा। २-फरडा दस्त-निस्म की अपेक्षा यदि फरा दस भावे सा चमिमत की निश्चानी समझनी चाहिये, हरस के रागी को सदा सस्त मस्त भाता है तथा उस में प्रायः सफरे का भाग छिल जाने से उस म से खून आसा है, पेट में भगवा सफरे में पानी के रहने से सदा वन की फनी रहती है, यदि कमेजे में पिच की किया टीक रीति से न हाये तथा भावश्यकता के अनुसार पिचकी उत्पति न हो भगवा मळ फो बागे रफेसने के रिये बाता में संग बोर रीसे होने की बावश्यक (निवनी पाहिले उतनी ) अति न होने तो दस्त फरड़ा भाता है। ३-खूनपाला दस्तपदि दसके साम में मिग हुभा सून भावा हो भना माम गिरती दो सो समझना चाहिये कि मरोड़ा से गया रे, हरस रोग में तभा रकपिछ रोग में सून धम्न से अलग गिरता है, मात् यस के पहिले का पीछे पार होफर गिरता है। -अधिक खून व पीपधारा दस्त-पदि पख के मार्ग से खून बहुत मिरे तमा पीप एक बम से भाने लगे तो समझ लेना पाहिये कि फसमा पकार भी सा में पूटा है। ५-मांस फे धोयन के समान दस्त-यदि दस धोये हुए मांस के पानी के समान भागे तथा उस में चादे कुछ सून भी दो वा न हो परन्तु पाछे छोतों के समान दो भीर उस में मात दुर्गन्य हो वो समझना पाहिले कि आते साने लगी है। १-सफद दस्त-यदि वस्तु का रंग सफेद हो सो समझना पाहिये किमाने में से पिप यधापश्या (पाहिये जितना) भाँता में नहीं आता है, माया ममम । पिणाम था फलेने के रोग में ऐसा दम्न मासा है। -सफेद फांजी के समान पा बाँपला के धोयन के समान दस्तदेने में तथा पो ( भत्सन्त ) भजीण में दस्त सफेव भेवी के समान गया भोवला के भावन के समान आया है।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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