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________________ १३२ चैनसम्प्रवापशिक्षा ॥ ५-स यन्त्र के द्वारा मत्र को देखने से यदि उस ( मून) फे नीरे कुछ ममात्र सा मालूम पड़े तो समझ सेना चाहिये कि-खार, खून, रसी (पीप ) तथा पर्य आदि का भाग मूत्र के साथ माता है, इन में भी विशेषता यह है कि-सार प्र भाग अधिक होने से मूत्र फटा हुआ सा, खून का भाग भपिक होने से पर, रसी (पीप) का भाग अधिक होने से मैस और गदतेपन से मुफ तथा पीप भाग अधिक होने से सिकना और ची के स्तरों से युक्त दील पाता है। ६-मूत्र में सटास फा माग अधिक होने से यह (मत्र) रकवणे फा (लाल रैप का) तथा पिठ का भाग अधिक होने से पीत वर्णका (पीले रंग का) भौर फेनो से हीन इस मन्त्र के द्वारा स्पष्टतया ( साफ तौर से) पीस पासा है। ७-मूत्र में शयर के भाग कर चाना इस यन्त्र के द्वारा प्राय सप ही जान सकते हैं, क्योकि शकर न सहप सम ही को निवित है। ८-स यन्त्र के द्वारा परीक्षा करने से यदि मूत्र-फेनरहित, अतिश्वेस (बहुत सफेद भर्यात् भरे की सफेदी के समान सफेद ), सिग्प (किना), पोरिक वत्त्व से युक, मोटे के रस के समान सदार, पोश्ट के सेठ के समान विष तमा नारियल के गूदे के समान खिन्न (चिकने) पदार्थ से संभ (गुणा हुमा), गावा तथा रक (खून ) की फान्ति (चमक) से युफ पीस पड़े तो जान लेना पाहिये कि-मूत्र में भारम्यूमीने है, इस प्रकार भासन्युमीन का निमय बाने पर मूत्राशय के वमन्पर फा भी निमय हो सकता है, जैसा कि पहिछे लिख चुके है। ०-स मन्त्र के द्वारा देसने पर मदि मूस में मगये हुए पौधे की राल के समान, बा काई में मूने हुए पवा के समान कोई पदार्थ दीसे अबरा सोडे की रास १-इस प्र वन भागे ना संस्था में दिया जायेगा। १-बाबम रो प्रमर प्रह-निन में से ए उचारणमाम्सुम्पन है मारिन या फ्रेश भाषा घसम्म इस को प्रम मापा में भाप मी पते है जिसका म सर , पस समय मर-1- पोसपेरी २-परवरिश परनेवाम्म मात्र भो व से पीपों वीरो पर मेरम स्वा है परन्तु गर्भ में मिम्मी पापा मम वर्षात् गे और इसी स्म के सरे मो में बारे प्ररित्सा सेवा, पोस्त के दाने में रोगनी (मप्र) हिस्सा लेता। मौर मारियम में गूदेदार मिस्सा घेता २-पा रसायम के नियम से पी पस्तोपो कि मामुमीन (बिस अब भी जाये मत है) मरे म प्र रघरम मास्युमीव, पा पाग इस तमा विपैग परा होता है जो पस भाषालक (बस्सी) मादा भमेष सेवा और भाप पछा होता है और पा रेप मारों में पाना पाता। पापा अब ऐभीर पहेस. स. सिमाम मा पाषा में भी पाया माता मह पर्व में पुम्माजम्मा पमी भौर पप रसायनिक प्रवियों से पम सारे
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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