________________
चतुर्थ अध्याय ॥
४१९ लाल जभि-जीभ की अनी तथा उस का किनारे का भाग सदा कुछ
लाल होता है परन्तु यदि सब जीभ लाल हो जावे अथवा उस का अधिक भाग लाल हो जावे तो शीतला, मुखपाक, मुँह का आना, पेट का शोथ तथा सोमल विष का खाना, इतने रोगों का अनुमान होता है, वुखार की दशा में
भी जीभ अनीपर तथा दोनों तरफ कोरपर अधिक लाल हो जाती है । फीकी जीभ-शरीर में से बहुत सा खून निकलने के पीछे अथवा बुखार तिल्ली
और इसी प्रकार की दूसरी वीमारियों में भी शरीर में से रक्तकणो के कम हो जाने से जैसे चेहस तथा चमड़ी फीकी पड़ जाती है उसी प्रकार जीभ भी
सफेद और फीकी पड़ जाती है ॥ मैली जीभ-कई रोगों में जीभपर सफेद थर आ जाती है उसी को मैली जीभ कहते हैं, बहुत सख्त बुखार में, सख्त सन्धिवात में, कलेजे के रोग में, मगज़ के रोग में और दस्त की कली में जीभ मैली हो जाती है, इस दशा में जीभ की अनी और दोनो तरफ की कोरो से जव जीभ का मैल कम होना शुरू हो जावे तो समझ लेना चाहिये कि रोग कम होना शुरू हुआ है, परन्तु यदि जीभ के पिछले भाग की तरफ से मैल की थर कम होना शुरू हो तो जानना चाहिये कि रोग धीरे २ घटेगा अभी उस के घटने का आरंभ हुआ है, यदि जीभ के ऊपर की थर जल्दी साफ हो जावे और जीभ का वह भाग लाल चिलकता हुआ और फटा हुआसा दीखे तो समझना चाहिये कि वीच में कोई स्थान सड़ा है वा उस में जखम हो गया है, क्योंकि जीभ का इस प्रकार का परिवर्तन खराबी के चित्रों को प्रकट करता है, बहुत दिनों के बुखार में जीभ की थर भूरी अथवा तमाखू के रग की होती है और जीभ के ऊपर बीच में चीरा पड़ता है वह भी बड़ी भयकर बीमारी का चिह्न है, पित्त के रोग में जीभ पर पीला मैल
जमता है। काली जीभ-कई एक रोगों में जीभ जामूनी रग की (जामून के रंग के समान रंगवाली ) या काले रंग की होती है, जैसे दम श्वास और फेफसे के साथ सम्बध रखनेवाले खासी आदि रोगों में जब श्वास लेने में अड़चल (दिक्कत ) पड़ती है तब खून ठीक रीति से साफ नहीं होता है इस से जीभ काली झाखी अथवा आसमानी रंग की होती है, स्मरण रहे कि-कई एक दूसरे रोगों में जब
जीम काले रंग की होती है तब रोगी के बचने की आशा थोड़ी रहती है। काँपती हुई जीभ-सन्निपात में, मगज के भयकर रोग मैं तथा दूसरे भी कई
एक भयंकर वा सख्त रोगों में जीभ कॉपा करती है, यहाँ तक कि वह रोगी के