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चैनसम्प्रवामशिक्षा ||
में घमंडी की परीक्षा में वेध लोग प्राय घोला खा जाते है, ऐसे अवसर पर नाड़ीपरीक्षा के द्वारा भभवा धर्मामेटर के द्वारा अन्दर ( धन्वर) की गर्मी जानी जा सकती है, कभी २ ऐसा भी होता है कि-ऊपर से तो चमडी सकती हुई तभा बुखार सा माकम देता है परन्तु भन्दर बुखार नहीं होता है। ३- टेढी चमड़ी-बहुत से रोग में शरीर की चमड़ी ठंडी पर जाती है, जैसेबुखार के उतर जाने के बाद निर्बलता (नाताफती) में, दूसरी बीमारियों से उत्पन्न हुई निर्बक्सा में, देने में तथा बहुत से पुराने रोगों में चमड़ी की पड़ जाती है, जब कभी किसी सख्त बीमारी में शरीर ठडा पड जाने तो पूरी बोस्वम ( ख़तरा ) समझनी चाहिये ।
४ - सूखी चमड़ी-मडी क छेदों में से सवा पसीना निकलता रहता है उस से मी नरम रहती है परन्तु जम फईएक रोगों में पसीना निकलना मद हो जाता है तब मी सूखी और खरखरी हो जाती है, जुम्दार के प्रारम्भ में पसीना निक ना बन्द हो जाता है इस लिये बुखारवाले की तथा वादी के रोगनाने की मड़ी सूखी होती है।
५- भीगी चमड़ी - आवश्यकता से अधिक पसीना आने से चमडी भीगी रहती है, इस के सिवाम पर एक रोगों में भी चमडी टडी मौर भीगी रहती है और ऐसे रोगों में रोगी को पूरा डर रहता है, जैसे- सन्धिवात (गठिया) में चमडी मर्म भर भीगी रहती है तथा देने में ठकी और भीगी रहती है, निमस्तामें ठंडा और भीगा बंग जोखम को जाहिर करता है, यदि कमी रातको पर चमडी भीगी रहे और निता (नाताकसी ) मदती जाने यो क्षय लिई सम झकर जस्वी ही सामधान हो जाना चाहिये ||
जीना हो
पपोटा (काम का
धर्मामेटर -- शरीर में कितनी गर्मी है, इस बात का ठीक माप धर्मामेटर से हो सकता है, धर्मामेटर काच की नमी में नीचे पारे से भराहुमा गोठ' गोमन) होता है, इस पारेवाले मस्य को मुँह में जीभ के नी मिनट तक रख कर पीछे बाहर निकाल कर देखते हैं, उस के अन्दर गर्मी से ऊपर पड़ता है तथा वर्दी से नीचे उतरता है, शरीर की गर्मी साधारणतया ९८ से १०० डिग्री के बीच में में मध्यम गर्मी ९८ से ९९ होती है और बाहर की गर्मी कुछ २ महोदरी ( वृद्धि) दोषी है तब पाय १०० तक पढ़ता है, नींद में और सम्पूर्ण शान्ति के समय में एक किमी गर्मी कम होती है, रोग में शरीर फी गर्मी विशेष चा धोर उतार करती है और शरीर की सामाजिक गर्मी से पारा अधिक उत्तर माता
पारा शरीर अच्छे वनदुर
रहती है,
हस्त
पादसीफि अथवा परिभेन्द्र से उस में क शरीर
बहु
या बगल में पांच