SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( e) बी म रे या व पी मन पम पौराय से एक पाखन करे पोरि- पा सप सापन पास्मा की छवि विपे दी है। ईर्या समिति। हिर पस्मा र साय गमन क्रिया में प्रवृत होना पाहिये पोरि-परन मिपा ी संबम के सापन हारी है दिम को बिना देसे मही पतमा पनि मो हरण पिना भूमि प्रमान लिए नही पा स्योंकि-पर्म र मुख परन ही है इस लिपे अपने परीर प्रमाण मागे मि को देस पर पैर रसना पारिपे । और पसवे इप पान करनी पारिपे। मान पाम फरमान पारिये। साप्याप भी म भरमा चाहिये।ऐसे करने से पस्न पूर्ण प्रकार से नहीं रामकता पपपि ममम क्रिया का निपेष नहीं किया गया किन्तु प्रपत्र का विपेप भपरप रिया भाषा समिति । नप गपम क्रिया में अपस्न का मिषेप दिया गया गे पोपने का मी पस्न प्रवरप होगा पारिये । पनि
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy