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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ ४०३ परन्तु अब अन्वेषण कुछ समय पूर्व स्पर्शपरीक्षा केवल हाथ के द्वारा ही होती थी ( ढूँढ वा खोज) करनेवाले चतुर लोगों ने हाथ का काम दूसरे साधनों से भी लेना शुरू कर दिया है अर्थात् शरीर की गर्मी का माप करने के लिये बुद्धिमानों ने जो थर्मामेटर यन्त्र बनाया है वह अत्यन्त प्रशसनीय है, क्योंकि इस साधन से एक साधारण आदमी भी स्वयमेव शरीर की गर्मी वा ज्वर की गर्मी का माप कर सकता है, हा इतनी त्रुटि इस में अवश्य है कि इस यन्त्र से केवल शरीर की साधारण गर्मी मालूम होती है किन्तु इस से दोषों के अंशांश का कुछ भी बोध नही होता है, इस लिये इस में चतुर वैद्यों के हाथ कई दर्जे इस की अपेक्षा प्रबल जानने चाहियें, बाकी तो रोगपरीक्षा में यह एक सर्वोपरि निदान है, इसी प्रकार हृदय में खून की चाल तथा श्वासोच्छ्वास की क्रिया को जानने के लिये स्टेथोस्कोप नाम की नली भी बुद्धिमान् पश्चिमीय विद्वानों ने बनाई है, यह भी हाथ का काम करती है तथा कान को सहायता देती है, इस लिये यह भी प्रशसा के योग्य है, तात्पर्य यह है कि स्पर्शपरीक्षा चाहे हाथ से की जावे चाहे किसी यन्त्रविशेष के द्वारा की जावे उस का करना अत्यावश्यक है, क्योंकि रोगपरीक्षा का प्रधान कारण स्पर्शपरीक्षा है, अतः क्रम से स्पर्श परीक्षा के अंगों का वर्णन संक्षेप से किया जाता है. नाड़ी परीक्षा — हृत्पिण्ड की गति के द्वारा हृदय में से खून बाहर धक्का खाकर धोरी नसों में जाता है, इस से उन नसो में खटका हुआ करता है और उन्ही खटकों से खून का न्यूनाधिक होना तथा वेग से फिरना मालूम होता है, इसी को नाडीज्ञान कहते है, इस नाड़ीज्ञान से रोग की भी कुछ परीक्षा हो सकती है, यद्यपि किसी भी घोरी नस के ऊपर अगुली के रखने से नाडीपरीक्षा हो सकती है तथापि रोगका अधिक निश्चय करने के लिये हाथ के अंगूठे के नीचे नाडी को देखते हैं, हाथ के पहुॅचे के आगे दो कठिन डोरी के समान नसें है, गोरी चमडीवाले तथा पतले शरीरवाले पुरुषों के ये रंगें स्पष्ट दिखाई देती है, उन में से अंगूठे की तरफ की डोरी के समान जो नाडी है उसपर बाहर की तरफ हाथ की दो वा तीन अगुलियों के रखने से अंगुली के नीचे खट २ होता हुआ शब्द मालूम पड़ता है, उन्ही खटकों को नाडी का ठनाका तथा चाल कहते हैं, नाड़ी की इसी धीमी वा तेज चाल के द्वारा चतुर वैद्य अंगुलिया रखकर शरीर की गर्मी शर्दी रुधिर की गति तथा ज्वर आदि बातों का ज्ञान कर सकता है । नाडीपरीक्षा की साधारण रीति यह है कि एक घड़ी को सामने रख कर एक हाथ से नाडी को देखना चाहिये अर्थात् हाथ की दो या तीन अगुलियो को नाडीपर रखकर यह देखना चाहिये कि नाडी एक मिनट में कितने ठपके देती है, एक साधारण पुरुष की नाडी एक मिनट में ११० ठपके दिया करती है, क्योंकि हृदय में शुद्ध खून का "
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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