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________________ चैनसम्प्रदायशिक्षा। -जीपिका पा वृत्ति-बहुत सी बीविकामे पा वृति ( रोनगार ) भी ऐसी है वो कि शरीर को रोग के योग्य बनानेवाले कारण पन नाती हैं, मैसे देसो! सब दिन बैठ कर फाम करनेवालों, भाख को बहुव परिभम देनेवाणे, कलेवा भौर फेफसा दवा से इस प्रकार मैठकर काम करने पागे, रम का काम करने पालो, पारा तथा फास सा गत्तम को मसे वो भी ये आम माडर माय बामे से मात मप्रसा तम्मा लिम्रा र देवे । चिसो परच परस्सा सम्बप नर्स पेवा और मवि वैररोग से सम्बंध हो मी माता रे पति परिने में परस्पर प्रेम नएं एवमत पे (बर भौर कम्पा) भाउ मादिगा एकसरे विम्य मुन हुए होते मप्रबन्धों भौर परस्पर के टेप परम पापा मनुप्म पाना प्रभार चाय में फा पवे मौर उनों ने अपनी मातिय रूप एवेरी पारियों में पीते प्य रमपे का पार पण पण पर गई पारी और पुरोहित मावि दुबरेनवो ऐना हो परन्तु उपर एक महान् सोफ प्रस्थान मौर भी माता पिता भारि मी न पुत्र में देखतेरे और ब भी देखने , परि पारे गोपरदेसवे नही देखरेखमा स्परा पारऔर क्या २ माप यान्ति पुर और पुत्री चाहे पोर और मारी क्यो न परे समय पर दिन में उग दे और चोमम अपने पारपन से हमे पति पाये माना होमोन बना रे परन्तु इस रसमा विन्ध मही , सम प्रमे से पीपा पा सम्मा पाचे पुत्र के साप पर्स पर बरसे साब सब उन दुई प्रष्ट होती है तब काम करें हमारे पोवो पप से ऐसा व वम भागाई, प्रिय महासयो ! देखिये ! पर मावा पिय मावि में तो पाया है भव पर सामनर क्सा पावे -सासम प्रमन -पा पुत्र और पुनी मरमर्मत मरे (भगिरादित)ीनों मा परन्तु मसराम भर्षात् परसाविम गुपये मोर सभाष बाम मरममा चाहिये इमावि, रसिये । प्रापन काग में भाप के पुमा भेग इसी भारोह नाम के गडधार अपने पुत्र और पुनिया परिसराते बिसप पापापा A रस समय में यह प्रस्त भम मपंपाम श्री प्रेमा विकास या वा साबरों में गरमी सम्मति से पुम्स रिस मोर मपम सिम से मुच एक परे से अपनी पा से पसर र मिग्रा प रत्तम सन्तानों को रसम र परा प्रसप रातेस कवन भसम्म तात्पर्य ब -न पसर से हए गुणी में मिसभी से निस पुमसे और रिस पुल से मिस श्री प्रेमपि मानम मि सम्म परसर रिवाद परमा पारिने (देखे! भीपाप माप प्रास्त परित्र रप में इस प्रवच भाषा १) पावसार यह भी पुपर परम -वि रत्तम विराह वही जिस में मम और सभाप भारि पुणे से सुख का भार पर न परस्पर समयसपा पम्य पर और मामु रमा पा पोम पो मात ऐ परन्तु पफ्स पनि वो ना - भारत मेरे रेपता भीर को पुती पिर इस पणा में पों और प्रासमय सम्मति प्रमेक पर मे पास ऐसतरही परम -विपातिपय में पानीस निसन्त मत ने गरेर प्रचार में निया प्रचार में मार से चादी षि प्ररमर विष सेवा, पिये | ANIL विषय में एक या भौर भी वर्ग मारी व प्रति कि
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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