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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ ३५३ का उच्चारण करते है, फिर सब लोग मिल कर अत्यन्त हर्ष के साथ उस महारोग को एक उस नादान भोली मूर्ति से चपेट देते है कि जिस के शिरपर मौर होता है, उस के दूसरे ही दिन प्रातःकाल होते ही सब स्थानों में इस के उस गृह में की घोषणा ( मुनादी ) हो जाती है । इस के बाद प्रवेश होने पाठक गण ! अब तो यह महान् रोग आप को प्रत्यक्ष प्रकट हो गया, कहिये तो सही यह किस 'धूमधाम से आता है 2 क्या २ खेल खिलाता है ? कैसे २ नाच नचाता है ? किस प्रकार सब को बेहोश कर देता है कि उस गृह के लोग तो क्या किन्तु अडोसी पड़ोसीतक इस के कौतुक में वशीभूत हो जाते है। सच पूछो तो इस रोग का ऐसे गाजे बाजे के साथ में घर में दखल होता है कि जिस में किसी प्रकार की रोक टोक नही होती है वरन यह कहना भी यथार्थ ही होगा कि सब लोग मिलकर आप ही उस महारोग को बुलाते है कि जिस का नाम "वाल्यविवाह" ( न्यून अवस्था का विवाह ) है । 心 V पाठक गण ऊपर के वर्णन से समझ गये होंगे कि - जो २ हानियां इस भारत वर्ष में हुई है उन का मूल कारण यही बाल्यावस्था का विवाह है, इस के विषय में वर्त्तमान समय के अच्छे २ वुद्धिमान् डाक्टर लोग भी पुकार २ कर कहते है कि-ऐसे विवाहो से कुछ लाभ नही है किन्तु अनेक हानियां होती है, देखिये डाक्टर डियूडविस्मिथ साहब (साविक प्रिन्सिपिल मेडिकल कालेज कलकत्ता ) का वचन है कि - "न्यून अवस्था के विवाह की रीति अत्यन्त अनुचित है, क्योंकि इस से शारीरिक तथा आत्मिक बल जाता रहता है, मन की उमग चली जाती है- फिर सामाजिक बल कैसा 2" डाक्टर नीवीमन कृष्ण वोष का वचन है कि - " शारीरिक बल के नष्ट होने के जितने कारण है उन सब में मुख्य कारण न्यून अवस्था का विवाह जानो, यही मस्तक के चल की उन्नति का रोकनेवाला है" । मिसस पी. जी. फिफसिन ( लेडी डाक्टर मुम्बई ) का कथन है कि - " हिन्दुओं की स्त्रियों में रुधिरविकार तथा चर्मदूषण आदि बीमारियों के अधिक होने का कारण बाल्यविवाह ही है, क्योंकि इस से सन्तान शीघ्र उत्पन्न होती है, फिर उस को उस दशा में दूध पिलाना पड़ता है जब कि माता की रंगें दृढ़ नहीं होती है, जिस से माता दुर्बल होकर नाना प्रकार के रोगों में फॅस जाती है" । डाक्टर महेन्द्रलाल सर्कार एम डी का वचन है कि- "बाल्यावस्था का विवाह अत्यन्त वुरा है, क्योंकि इस से जीवन की उन्नति की बहार लुट जाती है तथा शारीरिक उन्नति का द्वार बन्द हो जाता है" । उक्त डाक्टर साहब ने किसी समय सभा के बीच में यह भी वर्णन किया था कि- मै अपनी तीस वर्ष की परीक्षा से यह कह सकता हूँ कि फी सदी २५ स्त्रिया बाल्यावस्था के ४५
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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