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________________ ३१८ बेनसम्प्रदायशिक्षा ॥ है, इसीमकार महुत से दोपरूप धारण शरीर को ऐसी दशा में ले पाते हैं कि यह (घरीर) रोगोस्पति के योग्य पन जाता है, पीछे उत्पन हुए नवीन फारम शीघ्र ही रोग को उत्पन्न कर देते हैं, यपपि सरीर फो रोगोस्पति के योम्म पनानेवाले फारण बहुत से हैं परन्तु अन्ध के विस्तार के भय से उन सब का वर्णन नहीं करना चाहते हैं किन्तु उन में से कुछ मुख्य २ कारणो फा वर्मन फरते है-१-माता पिता की निर्ममता । २-निन कुटुम्ब में विवाह । ५-पाठकपन में (कची अवस्था में) विवाह । ५-सन्तान न निगरना। ५-अवस्था । ३-माति । ७-जीविका वा पूपि (व्यापार)। ८-प्रति (सासीर) । स सरीर को रोगोसधि के योग्य बनानेवाले ये ही आठ मुरूम फारम हैं, अम इन म सक्षेप से वर्णन किया जाता है - १-माता पिता की निर्यलप्ता-पदि गर्भ रहने के समय दोनों में से ( माना पिता में से ) एक का शरीर निर्दल दोगा सो माठक भी भवश्म निर्मम ही उस्पष होगा, इसी प्रकार यदि पिसा की अपेक्षा माता भधिक अवसागाठी होगी भगना माता की भपेदा पिसा महुत ही मषिक अवस्थावाला होगा (मी की अपेक्षा पुरुष की मबस्था मोदी तथा दूनीतक शेगी सनतफ तो मोग ही गिना भायेगा परन्तु इस से अधिक भवस्थानाला पवि पुरुष होगा) तो यह बोरा नहीं फिन्त कुमोड़ा गिना मायगा इस कुबोरे से भी उत्पन्न हुमा मालक निठ होता है और निर्भरता जो है पही पहुन से रोगों प मूस कारण है। २-निज फलुम्म में विषाद-पह भी निर्माता का पफ मुस्स रेसु है, इस म्येि रेपक शाम भावि में इस का निपेप किया है, न केमस भैपक शास्त्र भादि में ही इस का निपेष किया है किन्तु इसके निपेप के मौकिक कारण भी महुत से हैं परन्तु उन का वर्णन मन्म के बा बाने के भय से महापर नहीं करना चाहते हैं । हो उन में से दो तीन परणों को सो मवश्य ही विसगना पाहसे है-वेसियो -यो! बी मिल पुमारि ममवान् धीरपमरे ने प्रयासमती नेमपे उपम पम से एलिना मा भयंत पूरे घमय में पुपम पोगें से मेधुन होवा या इसकी उस समय में जो प्रथा की पनि पी और यो पुस्पारंप प्रम र सबले में मिल पोगर पूर्व पर पुम्म प पर पापों से भोपवे में उस समय मापनास पेवा मा रेप कर प्रभुने पुस्मा गाने के पिन रसरों में सन्तति से विवाहपने पास दो वर पर योग एकसाब मम्मे हुए मेरेम परेरे पाव चम्मे ए मेरे से निबाहरने गे पड़ो मम में भी ऐसी ही भामरे परम्नु परपिकी बारस्य मा में ऐसा रियायो माता सपिम में पसे और पिता के मोत्र में व से ऐसी कम्पा के सत्व रत्तम पाठिपसे पुस्पतिवार मना परिये स्मारि, परन्तु पावर में दो बम -- पामीति फेममा ऐने से माननीय रे॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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