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________________ ३४६ चैनसम्प्रदामशिक्षा || से ही होते हैं, काल का सो स्वभाव ही वर्त्तने का है इस लिये कभी धीत और कमी गर्मी का परिवर्धन होता ही है, अत अपनी प्रकृति, पदार्थों के स्वभाव और ऋतुओं के स्वमाग फे अनुसार बचाव करना तथा उसी के अनुकूल बाहार और विहार का उपचार करना प्राणी के हाथ में है, परन्तु कर्म यति विचित्र है, इस लिये कुदरती कारणों से बो रोग के कारण पैदा होते है वे कर्मवच विरले ही भावमियों के शरीर में माताबरण में खो २ परिवर्तन होता है वह यो रोग तथा रोग के वाला है परन्तु उस में भी अपने कर्म के वक्ष कोई माणी रोगी ऋतुओं का जो परिवर्तन है वह याठाभरण भर्थात् दवा की शुद्धि से ही सम्बन्ध रखता है परन्तु उस से भी जो पुरुष रोगी हो जाते हैं उन के कृठ मी मान सकते हैं, इसलिये वास्तव में तो यही किस्म के रोग को पहिचान कर ही उन का मयोचित अन्य की सम्मति है ॥ रोगोत्पत्ति करते हैं, कारणों को दूर करनेहो जाते हैं, इस लिये लिये तो इन उचित मीठ इलाज करना विकारों को वैव होता है कि हर चाहिये, मही इस यदि मनुष्य पुभ्म (वर्म) न करे तो उस के किये दुवार (दुःख का भर ) नरक गति तैयार है, माझ ! इस संसार की अनिता को तथा कर्मगति के श्रमस्कार को देखो कि जिन के घर में नग निधान और श्री राम मौजूद मे सोलह हजार देव जिन के मां कर बीस हजार मुकुटधारी राजे जिन प सुजरा करते थे जिन के यहां न सूरत रानियों को सीएम जीधन मागवीवान निश्वान श्रौषडिये प्राम ममर, बम्म बगीचे राजधानी रखों की खान सोमा भोषी और हे की पार्ने दास बासी, नाटक मम्ही पायात के शाधा रसोइये मिती सम्बोटी मोसमूह बाबर हक पू तोपें माची म्याने पानकी और अर्शम के भागनेवाले निमिसिमे साजिर रहते ह ये और बनायें बिन की सेवा में हर वक्त उपस्थित रहते थे और जिनकी जूतियों में मी अमूल्य रमा करते थे वे भी बड़े गये तो इसरों की मिनती को फोन कर ? सोचो तो सही कि बस इस संसार में न रहे या मौरों को क्या क्या है। केसर और ऐश्वर्य की तरफ देखो कि-काय गोजन का सम्मा चौध जम्बूदीप है, उस में दक्षिण दिवा की तरफ मारतवर्ष नामक एक सब से पेय, इक दिडे विमानों पितो छ होते है, होता है, वासुदेव से या भेस छत्रपति होता है, इस प्रकार समीरदार बौर सर भी उन छयों कम्पों का माविक होता है, बासुदेव तीन काम ठिक राजा होता है, उस से होता है और उस से भी से नीच जठर १ यह भी मानना ही पडता है कि-सामन्तराय अडर अपनी पृथ्वी के राज्य ही है, इसी प्रकार दीवान और मायवीयान मपि राज्य है किन्तु राज्य क बोर है परन्तु तद्यपि सामान्य प्रज्य के लिये तो भी राजा के ही तुम्य है, दरमे । मनर्भर जनरक श्रम मर्जर आदि सक्रिय भी पपि राजा नहीं है किन्तु राजा भेजे हुए अधिकारी है परन्तु वापि बड़ के भेजे हुए होने से भी राजा के ही तुम्ब माने जाते हैं यह सब न्यूनापिस्ता कमल पुष्प और पाप की नाव से ही होती है, इस बात का सदा म्यान में रकम सब अधिकारियों को उचित कि म्यान केही मागपर च मम्मा के माप का सर्व नायकर म्ररों से भी माप करावे देखो! पुष्प प्राप से एक समय था कि भबण्ड के धर्मो को ममार्ग सडक राज मुजरा करत थे परन्तु पुष्प की होगा से आज वह समय है कि अवायड के राज्य को जागव के राजे मुजरा करते है यत्पर्य यह है कि जब जिसका सिवाय तंत्र होता है व उसी कार घोर चारों ओर है इसीलिये कहा
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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