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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ ३३३ जब तक प्रजा जन अपने २ घर आंगन में इकट्ठी हुई रोगों को पैदा करनेवाली मलीनता को नहीं हटावेंगे तथा आहार विहार के आवश्यक खाधीन नियमों को नहीं जानेंगे तथा उन्हीं के अनुसार वर्ताव नहीं करेंगे तबतक शहर की सफाई और किये हुए आवश्यक प्रबन्धों से कुछ भी फल नहीं निकल सकेगा। ___ वर्तमान में जो आरोग्यता में बाधा पड़ रही है और सब आवश्यक नियम और प्रवन्ध अस्थिरवत् हो रहे हैं उस का कारण यही है कि इस समय में अज्ञान लोग अधिक है अर्थात् पढ़े लिखे भी बहुत से पुरुष शरीर रक्षा के नियमों से अनभिज्ञ है, यदि इस पर कोई पुरुप यह प्रश्न करे कि अब तो स्कूलों में अनेक विद्यायें और अनेक कलायें सिखलाई जाती है जिन के सीखने से लोगों का अज्ञान दूर हो रहा है फिर आप कैसे कहते है कि वर्तमान समय में अज्ञान लोग अधिक है ? तो इस का उत्तर यह है कि-वर्तमान समय में स्कूलों में जो अनेक विद्यायें और अनेक कलाय सिखलाई जाती है यह तो तुझारा कहना ठीक है परन्तु शरीर सरक्षण की शिक्षा स्कूलो में पूरे तौर से नहीं दी जाती है, इसीलिये हम कहते है कि पढ़े लिखे भी बहुत से पुरुष शरीर रक्षाके नियमो से अनभिज्ञ है, देखो ! मारवाड़ में जो विद्या के पढ़ाने का क्रम है उसे तो हम पहिले लिखही चुके है कि उन की पढाई शिक्षा के विषय में खाख धूल भी नहीं है, अब गुजराती, वगला, मराठी और अग्रेजी पाठशालाओं की तरफ दृष्टि डालिये तो यही ज्ञात होगा कि उक्त पाठशालाओ में तथा उक्त भापाओं की पुस्तकों में जिस क्रम से कसरत, हवा, पानी और प्रकाश आदि का विषय पढ़ाने के लिये नियत किया गया है वह क्रम ऐसा है कि छोटे २ बालको की समझ में वह कभी नहीं आ सकता है, क्योंकि वह शिक्षा का क्रम अति कठिन है तथा सक्षेप में वर्णित है अर्थात् विस्तार से वह नहीं लिखा गया है, देखो! थोडे वर्ष पूर्व अग्रेज़ी के पाचवें धोरण में सीनेटरी प्रायमर अर्थात् आरोग्यविद्याका प्रवेश किया गया था परन्तु उस का फल अवतक कुछ भी नहीं दीख पडता है, इस का कारण यही प्रतीत होता है कि उस का प्रारंभ वर्ष के अन्तिम दिनों में कक्षा में होता है और परीक्षा करनेवाले पुरुप अमुक २ विपय के प्रश्नों को प्रायः पूछते हैं इस बात का खयालकर शिक्षक और माष्टर लोग मुख्य २ विषयों के प्रश्नों को धोखा २ के कण्ठाग्र करा देते है अर्थात् सब विपयों को याद नहीं कराते है, परन्तु इस में माष्टरों का कुछ भी दोप नहीं है, क्योंकि दूसरे जो मुख्य २ विषय नियत हैं उन्हीं को सिखाने के लिये जब शिक्षकों को काफी समय नहीं मिलता है तो भला जो विषय गौण पक्ष में नियत किये है उनपर शिक्षक पुरुष पूरा ध्यान कब दे सकते हैं, ऐसी दशा में सर्कार को ही इस विषय में ध्यान देकर इस विद्या को उन्नति देनी चाहिये अर्थात् इस आरोग्यप्रद वैद्यक विद्या को सर्व विद्याओं में शिरोमणि समझ
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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