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________________ ३२० जैनसम्प्रदायशिया ।। यह स्वमों का संक्षेप से वर्णन किया गया, भष प्रसंगानुसार निवारे विपम में कुछ श्रावश्यक नियमों का वर्णन किया जाता है - १-पूर्व अभया दक्षिण की तरफ सिर करके सोना चाहिये। २-सोने की जगह साफ एकान्ध में भर्यात् गरर मा चन्द से रहित भौर बादार होनी चारिये । ___३-सोने के विछोने भी साफ होने चाहिये, क्योंकि मलीन जगह भौर मतीन विछोने पर सोने से मार मादि भनेक जन्तु ससाते है जिस से नींद में पापा पहुँचती हे मोर मीनता के कारण भनेक रोग भी उत्पन हो पाते हैं। -पौमासे में नमीन पर नहीं सोना पाहिये, क्योंकि इस से शर्वी भावि के अनेक विकार होते हैं भौर मीरयन्त के काटने प्रादि का भी भय रहता है। ५-चूने के गछ पर सोना वायु और कफ की महतिमा को हानि करता है। ६-पींग आदि पर सदा मुगपम मिछौने निछा कर सोना पोहिये । ७ केवस उप्प तासीर पाले को मुरी जगह में भीम भतु में ही सोना चादिमे परन्तु मिन देशो में पोस गिरती है उन में तो खुसी नगा में मा खुली चावनी में नहीं सोना चाहिये, एवं जिस स्थान में सोने से घरीर पर हमा का भपिक सपाटा (सकोरा) सामने से मंगता हो उस स्थान में नहीं सोना चाहिये। ८-सोने के कमरे के एर्नामे तथा सिमियों को विसकुस बद कर के कमी नहीं सोना चाहिये, किन्तु एक या दो खिरपियो भवश्प मुली रखनी चाहिमें मिस से वानी वा भाती रहे। ९-महुस परने भावि मभ्यास से, बहुस विचार से, नशा मावि के पीने से, अपना भन्म फिसी परण से मदि मन उचका हुमा (मस्बिर)ो सो सर्त नहीं सोना चाहिये। १०-सोने के पहिले तिर को ठप रसना पाहिये, पवि गर्म हो तो मे बस से पो साम्ना पाहिये। ११-पैरों को सोने के समय सवा गर्म रसना चामें, यदि पैर टने को तम्मों को क्षेत्र से मम्मा पर गर्म पानी में रस पर गर्म करना चाहिये । १-म प्र पूरा धर्म बचना ऐ दो हमारे बनाइए ममा निमित्त रमाबर माम प्रप में देश रसपमूल ) समा मात्र - 1 प्रामरों ने प्रा :- सनम सूमे हापरे, मन रमाले पार लिन मारे मर गया बो सेठ पगा गार ॥१॥ ..मी (पोने माप मी) सिरोप मौर पर ग्रे मर्म रखना चाहिये।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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