SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ चैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ " स्थूल मनुष्यों के पतले होने के उपाय --स्थूल मनुष्यों को भी मक्खन योर स्वांड भावि चरबी वाले पदार्थ तथा माटे के सत्य माछे पदार्थ बहुत ही भोटे खाने चाहिये, पुष्टिवाले पदार्थ अधिक लाने चाहियें, गेहूं सलगम और नारंगी आदि पल खाने चाहियें, भी, मक्खन, मलाई, तेल, खांद, घरवी भाले मन, साबूदाना, चावल, मन, पूरणपोळी, कोकम, आम, दाल, केला, बादाम, पिस्ता, नेवा और चिरौभी आदि मेवे, भाव, सुरण, सकरकन्द और अरबी आदि पदार्थ नहीं खाने चाहियें, मथना बहुत ही कम स्वाने चाहियें दूष भोटा खाना चाहिये, यदि चाय और फाफी के पीने का सम्पास हो तो उस में दूब बहुत ही भोड़ा सा डालना चाहिये अथवा नींबू से सुवासित कर के पीना चाहिये ॥ मगज के मज्जा तन्तुओं को दृढ़ करने वाली खुराक ॥ जिस खुराक में आमूल्युमीन नामक सत्व अधिक होता है यह मगज के मज्जा तन्तुम का पोपण करती है, पौष्टिक तत्ववाली खुराक में माम्युमीन का कुछ २ भक्ष होता है परन्तु सखावर आदि कई एक वनस्पतियों में इस का अंत बहुत ही होता है इस छिपे सवार भादि वनस्पतियों का पाक तथा मुरब्बा बना कर खाना चाहिये, मगम सभा वीर्य की दृढ़ता के खिमे वैद्यकशास्त्र में बहुत सी उत्तम वनस्पतियों का खाना वतलाया है उनका उचित विधि से उपयोग करने पर वे पूरा गुण करती है, उन में से कुछ घन म्पतियां ये हैं—मूकोसा, शतावर, असगँम, गोखरू, कोच के बीज, आँवला और सा हुली, इन के सिवाय और भी बहुत सी वनस्पतियां हैं जो कि अत्यन्त गुणवाली है, जिन का मुरम्बा अथवा ल्यू बना कर खाने से मभषा अबछेद बनाकर पाटने से मगन के मासन्तु और पुष्ट होते हैं, बल बुद्धि और बीर्य बढ़ता है तथा मनसम्बधी म्भता और अस्थिरता दूर होती है, इन के सिवाय हमारे विवेकसम्म श्रीवसौभाग्य कार्याम का बना हुआ पुष्टिकारक चूर्ण दूप के साथ सने से गर्मी भावि मगम के विकारों को घूर कर साकत देता है तथा बीमे के बढ़ाने में यह सर्वोतम बस्तु है । मगम की निर्बलता के समय गेहूँ, चना, मटर, प्याम, करेला, अरवी, सफरबन्ध, अनार और माम मावि पदार्थ पम्प है ॥ स्मरणशक्ति तथा बुद्ध को बढ़ाने वाली खुराक ॥ स्मरणशक्ति तथा बुद्धि मगम से सम्बंध रखती है और उस की क्षति का मुख्य आधार मन का मफुलित होना सभा नीरोगता ही है, इसलिये सब से मथम तो स्मरण क्षति तथा बुद्धि के गाने का यही उपाय है कि सदा मन को प्रसन्न रखना चाहिये तथा यथायोम्प लाहार और बिहार के द्वारा नीरोगता को कायम रखना चाहिये, इन
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy