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________________ २६२ बैनसम्प्रदायशिक्षा । छठा प्रकरण-पथ्यापथ्यवर्णन पथ्यापथ्य का विवरण ॥ १-सानपान के कुछ पदार्थ ऐसे हैं जो कि नीरोग मनुष्यों के म्येि सर्व प्रमों और सब देशों में अनुसून आते हैं। २-कुछ पदार्थ ऐसे भी हैं मों कि कुछ मनुष्यों के अनुकूल और कुछ मनुष्यों के प्रतिकूल भाते हैं, एन एक ऋतु में मनु मौर दूसरी पातु में प्रतिकूल माते हैं, इसी मकार एक देश में मनुकूल और दूसरे देश में प्रतिकूल होते हैं। ३-कुछ पदार्य ऐसे भी हैं जो कि सब प्रकार की प्रकृविवागे के म्मेि सब प्रातुओं में मौर सम देशों में सदा हानि ही करते हैं। इन तीनों प्रकार के पदायों में से प्रमम संस्मा में कहे हुए पदार्थ पम्प ( सब के रिये हितकारी) दूसरी संस्था में को हुए पदार्य पथ्यापथ्य (हितका तमा महितकर्ता पास् किसी के लिये हितकारी और किसी के लिये अहितकारी) और तीसरी सस्मा में कहे हुए पदार्थ कुपथ्य ममना भपम्य (सब के लिये महितकारी) कालाते हैं। ___ मब इन (तीनों प्रकार के पदायों) का क्रम से वर्मन पूर्वापायों के मेस तथा अपने अनुभव के विचारों के अनुसार सक्षेप से करते हैं पथ्यपदार्थ ॥ अनाज मं-पायम, गेर, औं, मूंग, मरहर (तूर), पना, मोठ, मसूर और मटर, ये सब सापारणतया सब के हितकारी हैं भर्षात् वे सब सवा साये वावें वो किसी प्रकार की मी हानि नहीं करते है, हो इस बात का स्मरण भवम रसना चाहिये किइन सब मनायों में जुटे २ गुण है इस म्येि इन के गुणों का भौर अपनी प्रति का विचार कर इन का यथायोम्प उपयोग करना पाहिये। पनों को यहां पर यपपि पथ्य पदार्थों में गिमाया है समापि इन के मभिक साने से पेट में वायु भर कर पेट फूस माता है इस सिये इन को कम साना चाहिये, पावर एक पर्व के पुराने मच्छे होते हैं, मगर (तूर) की दाल को पीसकर सान से मिलकर मायु को महीं करती है, मूंग यपपि वायु को करसी है परन्तु उस की दास का पानी त्रिदोपहर मौर मयंकर रोग में भी पप्प है, इस के सिवाय मिन २ पेक्षवावे लोगों को मारम्भ से ही मिन पदार्थों का अभ्यास हो जाता है उनके लिये ये ही पदार्म पथ्य हो जाते हैं। पदा सिप रिवी मिशा परिवारको तगममा ध में पर्सी। "साय ।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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