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________________ चैनसम्प्रदायशिक्षा || काजी परो- -रुचिकारी, वासनाशक, कफकारक, झीवल तथा शुमनाक है, पूर्व वाह और अजीर्ण को दूर करते हैं, परन्तु नेत्ररोगी के मिये अहित है । २६० - इमली के परे – रुचिकारी, अभिदीपक तथा पूर्व कहे हुए नरों के समान गुणवाले हैं ॥ मूंग परा-मूग के बरे (बड़े) छाछ में परिपक करके तैयार किये जायें तो वे इसके और वीवछ है तथा ये संस्कार के प्रभाव से त्रिदोषनाशक और पथ्य हो जाते है । अलीक मत्स्य --- खाने में स्वादिष्ठ सभा रुचिकारी हैं, इन को मथुआ के शाक से अभमा रायते से खाना चाहिये || मूग अवरस्य की बड़ी - रुचिकारक, हलकी, यलकारी, दीपन, धातुभों की तृषि करनेवाली, पथ्य और त्रिदोषनाश्चक हैं | पकोरी - रुपिकारी, विष्टम्भकर्ता, बलकारी और पुष्टिकारक हैं । गुझा या गुशिर्या --वलकारक, वृंहण तथा रुचिकारी है ॥ १-एक मित्री का बडा कर उस के भीतर का चुप बगे फिर उस में उसमें राई, जीरा नमक हींग साठ और इसी इन का चूर्ण काम कर जब के बड़ों को भयो देने और उस भर के सुध को बंद कर किसी एकान्त स्थान में भर बंगे बस ३ दिन के होने पर उन्हें काम में सा जब मर कर उस नम में बाद ये इसी काटा कर जल में ही उसे खूब भीजे फिर किसी कपडे में डालकर उसे छान तथा उसमें पमक मिर्च जीरा आदि समायोग्य मिम्ाकर भयोगियों को मिले देव मे हम के बरे सा उड़द की पड़ी बड़े सम्बत पानों को कपेट कर बुद्धि से कई में के फिर उन को उतार कर चाकू से कदर छे पीछे उनको समेत मे इनको ठीक मस्य ४-मूम से बनी हुई बडियों को वेस में तलकर हाथ से मिर्च जीरा कींबू का रस और अजमायन चूम पर डाले इसमें मुनी पोट भर रक इन सब को बुद्धि से भिष्म कर उस पिको बडाई में अपना वर्ष पर फिर इस पो बनाउन भीतर माम् भर के उन पोलोको तम में सिद्ध करे जब सिक जाने तप उतार कर कड़ी में बाम देन ५न की मिनी छनी बाब को बड़ी से पीस कर बसन बना जय बेसन को उसन कर तथा चमक आदि डालकर बडियो बनाकर घी या तेम में कई में है, इस को में भी डाव -मदार पी को मिलाकर पापडी बनाकर भी में ब्रेक लेने जब मित्र जाकिर कूट डा फिर बारीक बावनी में इस में सफेद बूरा मिम्म कर एकजीव करायची गामि नारियल की गिरी भार निरोजी आदि काल से फिर मोसम ( मोबन ) दी दुई मैदा मात्र भर न कर उस के भीतर इस क्रूर से भरे र फिर इसकी शुचिमा बना कर वो पर फिराई में भी इनको सदन को गुम्रा या गुडिया न हो * भीदार पर प्रायः पूर्व में बना
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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