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________________ ૨૫૮ जैनसम्पदामशिक्षा ॥ आम का पना--तस्काल रुविकर्ता, याकारी तथा धीन ही इन्द्रियों की सृष्टि कारी है। इमली का पना-वासनाशक, किश्चित् पिएकफकर्ण, रुषिकारी तथा अमि नींबू का पना-अत्यन्त सहा, पावनाधक, पमिदीपक, रुपिकारी सभा सम्पूर्ण किये हुए भाहार का पात्र है॥ पनिये का पना--मह पिस के उपद्रों ने शान्त करता है ।। जों का स -धीसम, दीपन, इसका, पखावर, कफपिसनावक, सम भौर मेसन (दुर्वग्रनेवाला) है, इस का पीना बलवायफ, प्य, पंहण, मेवक, तृप्तिका, मधुर, रुपिकारी तथा अन्त में पम्नाक्षक है, यह कफ, पित्त, परिभम, भूस, प्मास, भयादि थोर नेत्ररोग को नष्ट करता है तथा वाह से व्याकुल मौर व्यायाम से मान्त (बके हुए ) पुरुषों के लिये हितकारी है ।। घना और जौ का सत्त-यह कुछ बातभारक है इसलिये इस में पूरा धोर पी गर कर इसे साना पाहिमे ॥ शालिसत्तू-ममिमर्षक, एका, श्रीसन, मधुर, ग्राही, सपिका, पथ्य, बरु कारक, शुक्रमनक भौर एप्तिकारक है ॥ पहुरी-दुर्नर (कठिनता से पभनेवाला), लक्ष, रुपा गामवाली बमा मारी है, परन्तु प्रमेह का मौर बमन को नष्ट करती है ।। स्त्रील (लाजा)-मभुर, धीतस, हम्की, भमिदीपक, मस्पम्मका, स्था, बफर्ण उमा पिचनायक, मह, कफ, ममम, पठीसार, पार, पिरविकार, प्रमेह, मेव रोग मोर सूपा को दूर करती है । चिउरा (चिरमुरा)-भारी, वातनाशक तथा फफा है, यदि इन ने दूप के साम साया जाये तो ये पूरण, पप्प, बलकारी भौर दस्त को गनेवाले होते॥ 1-समारपार में सामत, इस पाने में प्रवामियों ने प्यान में रपमा यि :मोगमर म वा राव से पप्रम पर रात्रि में पाये तब पापे एक गम में सरे प्रभर पपस मिमर पाप मिमी भान मि (बेरा ) न पाये मर्म र पा पसाय म खा - पूर्व में मुनिसा पपत्त प्रतेरे पापाशिवाप प्रपया माता २-पररित भुए बानो बारीमा -माधानों के भूनने से मनवी ५-गुरव र पनि पापनों में भूय पर बिना कि मुझे प्रेपर्म ही भोपस्म में गतार मेरे बार व
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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