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________________ २४८ जैनसम्प्रदायशिक्षा || सामान्य और उपयोगी चाक तथा पनियां, हल्दी, जीरा और नमक आदि मसाले, इन सब पदार्थों का परिमित उपयोग किया जावे, परन्तु व्यसन स्वाद मौर चौक मोड़ा सा सहारा मिसने से बेहद बन कर परिणाम में अनेक दानियों को करते हैं अर्थात् उपसनी और चौकीन को सब तरह से नष्ट अष्ट कर देते हैं, देखो । इन से चार बातों की हानि वो प्रत्यक्ष ही दीखती है अर्थात् धन का नाश होता है, शरीर बिगड़ता है, प्रतिष्ठा याती रहती है और अमूल्य समय नष्ट होता है । उक्त व्यसन स्वाद और चौक वर्तमान समय में मसालों के सेवन में भी अत्यन्त बढे हुए हैं अर्थात् योग वाक और चाक आदि में वेपरिमाण मसाले डाल कर खाते हैं तथा रस से यह साम समझते हैं कि ये मसाले गर्म होने के कारण जठरामि को प्रदीप्त करेंगे जिस से पाघनद्यक्ति बढ़ेगी और खुराक अच्छी तरह से सभा अधिक स्वाई खायेगी सभा बीय में भी गर्मी पहुँचने से उत्तेजन शक्ति बनेगी इत्यादि, परन्तु यह सब उन लोगों का अत्यन्त अम है, क्योंकि प्रथम तो मसालों में बितनी बस्तुयें डाली जाती हैं व सब ही सय मतिनाली के लिये तथा सर्वदा अनुकूल होकर शरीर की मारोम्पता को बनायें रक्खें यह कभी नहीं हो सकता है, दूसरे मसालों में बहुत से पदार्थ एसे हैं यो कि इन्द्रियों को महकानेवाले सभा इन्द्रियों के उतेजक होकर भी शरीर के कई भनमयों में बाधा पहुँचाते हैं, तीसरे मसालो में बहुत से ऐसे पदार्थ है जो कि शरीर की बीमारी में दबा के तोर पर दिये जाते हैं, जैसे-छोटी बड़ी इलायची, लौंग, सफेद बीरा, स्पाह वीरा, वादश्रीनी, तेजपात भर काली मिर्च मादि, मग यदि प्रतिदिन उन्हीं पदार्थों का अधिक सेवन किया जावे तो वे दमा के समय अपना असर नहीं करते हैं, पौधे- -खुराक में सदा गर्म मसालों का स्वाना अच्छा भी नहीं है, क्योंकि स्वाभाविक अठरामिको दूसरे मसालों की बनावटी गर्मी से बढ़ा कर अधिक खुराक का खाना अच्छा नहीं है क्योंकि यह परिणाम में हानि करता है, देखो ! एक विद्वान् का कमन है कि- "इलाज और खुराफ वे ही अच्छे है जिन का परिणाम अच्छा हो अर्थात् जिन से परियम में किसी प्रकार की हानि न हो ' आहा ! यह कैसा मच्छा उपदेशवाक वाक्य है, क्या यह वाक्य सामान्य मजा क सदा याद रखने का नहीं है ! इसलिये गर्म मसालों तथा मत्यन्त धीरम मसालार चटनी आदि सब पदार्थों को प्रतिदिन नहीं खाना चाहिये, क्योंकि इन का सदा सेवन करना सब मनुष्यों के लिय कभी एक सहा दिवम्बर नहीं होसकता है, यद्यपि यह ठीक है कि गर्म मसाले वा मसालेवार पदाथ रुमि को अधिक जागृत करते हैं तभा जठराम को भी अधिक तेज करते है जिस से सपना अधिक वाया जाता है परन्तु स्मरणरम्पना चाहिये कि स्वाभाविक जठरामि के समान मसालों की गर्म से उस हुइ तर पर दो है
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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