________________
( २५६ )
सत्रहवां पाठ । ( धर्म प्रचार विषय )
प्रिय सज्जनों ! जब तक धर्म प्रचार नहीं होता तब तक लोग सदाचारी नहीं बन सकते श्रतएव सदाचार की प्रवृत्ति के लिये धर्म प्रचार की । अत्यन्त भावश्वकता है।
विद्वान् पुरुषों को योग्य है कि देश कालन हो कर धर्म शिक्षाओं द्वारा प्राणियों को सदाचार में मात कराते रहें यावन्मात्र संसार भर में अन्धार्य व्यभिचार की प्रवृति दृष्टि गोचर हो रही है यह सब धर्म प्रचार के न होने के ही कारण से है जब धर्म प्रवार न्याय पूर्वक किया जाये तब उक्त मतृचियें अन्तर हो जायें अपितु धर्म प्रचार के जिन २ साधनों की आवश्यकता है वे साधन देश कालानुसार प्रयुक्त करने से सफलता को प्राप्त हो जाते हैं ।
अब उन साधनों के विषय में यत्किचित् लिखते हैं जैसे कि- “उपदेशक" सदाचार में रत वर्मात्मा पूर्ण