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पन्द्रवां पाठ ।
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(- धन्ना शेठ की कथा )
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प्रिय सुज्ञ - पुरुपो ! प्राचीन समय में एक राज गृह नगर वसला था उसके बाद एक सुभूमि भाग नाम वाला बाग था जो अति मनोहर या उस नगर में एक धन्ना शेठ पसता था. जो वंडर धनवान् था उस की भद्रा नाम-वली धर्म पत्नी थी, धन्ना शेठ के चार पुत्र थे उन नाम: शेठ जी ने इस प्रकार स्थापन किये थे जैसे किधनपाल १ धन देव २ वन- गोप ३ और धन-क्षत ४ उन चारों पुत्रों की चारों बधुएँ यो-जैसे कि - उज्झिया १ भोग वर्त्तिका २ उक्षिका ३ और रोहिणी ४ ।
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एक समय की बात है कि-घन्ना शेठ आधी रात के समय अपने कुटम्ब की विचारणा कर रहे थे साथ ही इस बात को भी विचार करने लग गये, कि मैं इस समय इस नगर में बढ़ा माननीय शेठ हूं, मेरी सर्व प्रकार से उन्नति हो रही है किन्तु मेरे विदेश जाने पर वा रुग्णावस्था के आने पर तथा मृत्यु के प्राप्त होने पर मेरे,
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