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( १७१ ) श्याम ऐसे उच कोटी के विद्वान् वा श्राचार्य होते हुए भी प्राप तपस्वी भी थे- एक वार आप ने ३३-ब्रत (उपवास) लगातार किए पाना के शिवा (सिवा) आ ने और कुछ भी नही खान पान किया, '८ वा १५ दिन पर्यन्त तो शापने कई वार तप ( उपवास) झिये।
सहन शक्ति आपकी ऐसी असीम यी फि-विपक्षियों की नीर से श्राप को अनेक प्रकार के कष्ट 'हुए उनका हर्ष पूर्वक श्राप ने सदन किए । । । ', पनेरू सुयोग्य पुरुषों ने श्राप के पास दीक्षाएँ धारण की-जो आप के अमृतमयं व्याख्यान को सुन लेता था वह एक बार तो वैराग्य से भीग जाता था, ग्राम २.वा-नगर-२ में आप ने फिरका जैन ध्वजा फहगई और नागों को सुपथ में प्रारूढ़ किया. पनी गच्छ. मोदा के ई-नियम भी आपने नियन-किए, जन धम पर माप.की अलीम-श्रद्धा-यो-जैसे कि- . .
उन दिनों में भापके हाथों के दीक्षित किए हुएश्री. श्री श्री १०८ स्वामी जीवन रामजी महाराज के शिष्य आत्मा राम जी की, श्रद्धा मूचि पूजा की होजाने के