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________________ ( १६५ ) वहां ही मैं-फिर लक्ष्मी शेठ जी के घर में स्थिर से कर रहने लगी इस दृष्टान्त से यह सिद्ध हुआ कि-जहाँ प्रेम होता है वहां सब कुछ होजाता है इस लिये ! देव, गुरु, भौर धर्म की पूर्ण प्रकार से परीक्षा करके फिर इस के प्रचार में कटि वध हो जाना चाहिये । जब अहिंसा धर्म का सर्वत्र प्रचार किया जाएगा तब सदा चार का प्रचार भी साय ही हो जाएगा। जो कि-सदा चार सत् पुरुषों का जीवन है। मोक्ष के अक्षय मुख के देने वाला है। चौदहवाँ पाठ। (श्रीपूज्य अमरसिंह जी महाराज का जीवन चरित् ) प्रिय सुज्ञपुरुपो ! एक महर्षि की जीवनी से अनेक मात्माओं का लाम पहुंचता है फिर जनता उसीका अनुकरण करने लगमाती है।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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