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और मनस्पति काय में जैन शास्त्रों में संस्पृाव, भरूपात,
या अनन्य आस्मा स्वीकार किये है किन्तु उन लोगों ये मन में जीव सचाही नहीं स्वीकार की तो मला फिर धनको रक्षा में वे कटिवद्ध फेस खड़े हो जाएं
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अतएव । जैन शास्त्रों ने एकत्रियादि से लकर पामि वर्यम्य भीशे पर अहिंसा धर्म का प्रचार किया, सो धर्म महाक्रता है मासिक सर्व प्रकार से
पालन करता
भर मी रक्षा पर्म ही दान, शीख, वप, और भावना रूप मे साम्य नहीं ।
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क्याशक-अहिमा बम मापन हुये ही दान दिया भा सकता किया जाता है, श स पावन होता है, भक्त पर्यो
मपलता की नाटो
है।
सानप पी कर लिया किन्तु भावना समनतोनों ही पम सफल नहीं
नए ! ना द्वारा क्रायों को सफल
करन | |