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श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत,
तृष्णा तरंग चरी अति जारी | बहे जात सब जन तन धारी । मान फेन यति उमंग चढ्यो है । अब प्रभु शांत कीजो जी ॥ तुम० ॥ ५ ॥ लाख चटरासी जमरा तिजारी | मांहि फस्यो हुं सुद्ध बुद्ध हारी । काल अनंत अंत नहीं आयो । अब प्रभु काढ लीजो जी ॥ तुम० ॥ ६ ॥ श्रतम रूप दब्यो सब मेरो । अजित जिनेसर सेवक तेरो । अबतो फंद हरो प्रभु मेरो । निरजय थान दीजो जी ॥ तुम० ॥ ७ ॥
इति श्री अजितजिन स्तवनम् ॥ २
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श्री संभवनाथ स्तवन । ॥ हिरणी यव चरे ए देशी ॥ संभव जिन सुख कारीया ललना । पूरण हो तुम गुण जंकार । पूजो प्रभु जावसे ललना ॥ दुख दुर्गति दूरे हरे ललना । काटेहो जन्ममरण संसार । पदकज जो
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