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________________ बादश नावना. ४५ गतिसे सहु जगमें फीरना । निज ॥ जगवन फुःखदावानल दहके हिरन पोतको कोसरना ।तिम सरण विना तूं मोहसें पाप पिंकों क्यों जरना ॥ निज॥५॥ हरि विरंचि ईश नहीं जाते आपही तिनको क्यों मरना। जिन वचन हि साचे जीवना जितनाहि आयु धरना ॥ निज ॥६॥ आतमराम तुं समज सयाने ले जिनवर वचका सरनां । ममता मत कीजे नहीं तेरी मेरी में तें परना ॥ निज॥७॥ इति वितीय श्मशरण नावना. अथ तृतीय संसार नावना. राग सोरठ ॥ कुवजाने जाउ मारा ॥ ए देशी ॥ __उरकायो आतमज्ञानी संसार मुखांकी खांनी उरकायो॥ आंचली॥ वेदपाठी मरी पाणज होवे खामी सेवक पामी। ब्रह्मा कीट हिजवर रासन नृप वर नरकही गामी ॥ उर० ॥१॥ सुरवर खर खर जगपति
SR No.010857
Book TitleChaturvinshati Jinstavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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