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बादश नावना.
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गतिसे सहु जगमें फीरना । निज ॥ जगवन फुःखदावानल दहके हिरन पोतको कोसरना ।तिम सरण विना तूं मोहसें पाप पिंकों क्यों जरना ॥ निज॥५॥ हरि विरंचि ईश नहीं जाते आपही तिनको क्यों मरना। जिन वचन हि साचे जीवना जितनाहि आयु धरना ॥ निज ॥६॥ आतमराम तुं समज सयाने ले जिनवर वचका सरनां । ममता मत कीजे नहीं तेरी मेरी में तें परना ॥ निज॥७॥
इति वितीय श्मशरण नावना. अथ तृतीय संसार नावना. राग सोरठ ॥ कुवजाने जाउ मारा ॥ ए देशी ॥ __उरकायो आतमज्ञानी संसार मुखांकी खांनी उरकायो॥ आंचली॥ वेदपाठी मरी पाणज होवे खामी सेवक पामी। ब्रह्मा कीट हिजवर रासन नृप वर नरकही गामी ॥ उर० ॥१॥ सुरवर खर खर जगपति