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प्रीदश' जावनी. -
श्रीमंदू आत्मारामजी महाराजकृत
॥ द्वादश ज्ञावना ॥ प्रथम नित्य नावना.
योवन धन थीर नही रेहनारे ॥ श्रांचली ॥ प्रात समय जो नजरे आवे मध्य दीने नहीं दीसे ॥ जो मध्याने सो नहीं रात्रे क्यों विरथा मन हींसे ॥ योवन० ॥ १ ॥ पवन ऊकोरे बादर विनसे त्युं शरीर तुम नासे । लबी जल तरंग वत चपला क्यों बांधे मन आसे ॥ योवन० ॥ २ ॥ वलन संग सुपनसी माया इनमें राग हि कैसा | बिनमें उडे अर्कतूल ज्युं योवन जगमे ऐसा । योवन० । ३ । चक्री हरिपुरंदर राजे मद माते रस मोहे | कौन देश में मरी पहुंते । तिनकी खबर न कोड़े ॥ योवन० ॥ ४ ॥ जग मायामें नहीं लोभावे श्रतमराम सयाने । अजर -
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