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श्रामदावजयानदसूार कृत,
आतमराम दिखालीयो । स। पंडित फलदातार ॥ स ॥७॥
इति श्री अरनाथ जिन स्तवनम् ॥१७॥
श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन ॥ रामचंद के बाग चंपा मोहर रह्यो । ए देशी ॥ - मविजिनेसरदेव नवदधि पार करो जी ॥ तूं प्रजु दीनदयाल । तारकविरुद धरो जी ॥१॥ तुम सम बैद न कोय । जानो मर्म खरोरी। जावे जिस विधरोग । तैसोही ज्ञान धरोरी॥२॥अडकर्म चार कषाय । रोग असाध्य कह्योरी। मदन महा मुख देन । सब जग व्याप रह्योरी ॥३॥तूं प्रर्नु पूरण बैद । त्रिजुवन जाच लह्योरी। किरपा करो जगनाथ । अब अवकास थयो री॥४॥ वचन पियूष अनूप । मुऊमन माहि धरो री। दीजो पथ्यप्रदान । मन तन दाद हरो री॥५॥ सम्यग दर्शन झान ।